जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
सबके दिलों में तु प्यार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
चन्द्रमा के अमृत का सार बन के रहना ।
दुलहन का सोलह श्रृंगार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
कोयल कि कुह कुह पुकार बन के रहना ।
स्वाती की अमृत फुहार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
थक जाऊँ जब मैं जग के थपेड़ों से ।
गतिमान नदिया कि धार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
मुर्झाए मुखड़ा जब दुनियाँ की तानों से ।
चन्दन सी शीतल बयार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
अर्थी जब निकले जगत से ये मेरी ।
फूलों कि वर्षा अपार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र