जिन्दगी………….. – ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।
सबके दिलों में तु प्यार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।

चन्द्रमा के अमृत का सार बन के रहना ।
दुलहन का सोलह श्रृंगार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।

कोयल कि कुह कुह पुकार बन के रहना ।
स्वाती की अमृत फुहार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।

थक जाऊँ जब मैं जग के थपेड़ों से ।
गतिमान नदिया कि धार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।

मुर्झाए मुखड़ा जब दुनियाँ की तानों से ।
चन्दन सी शीतल बयार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।

अर्थी जब निकले जगत से ये मेरी ।
फूलों कि वर्षा अपार बन के रहना ।।
जिन्दगी बहार हो बहार बन के रहना ।

 

 

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र