भैया नर तन सों दूसर न तन मिलिहैं….. – ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

मनुष्य के शरीर के समान दूसरा कोई शरीर नहीं है। इसे पाने के लिए देवता लोग भी याचना करते हैं पर मिल नहीं पाता है। बड़ी भाग्य से बिरले किसी को यह मनुष्य शरीर प्रभु देते हैं। यह शरीर मोक्ष का द्वार और स्वर्ग नर्क की सीढ़ी है, इसी शरीर से अनेक साधन हो पाता है और अच्छे बुरे कर्म होते हैं और कर्मों के अनुसार फल मिलते हैं। मनुष्य का शरीर सत्कर्म करने के लिए मिलता है , बुरे कर्मों में इसे लगा कर नरक का भागी होना पड़ता है इसलिए इस मानव शरीर का उपयोग सत्कर्म के लिए करना चाहिए, प्रभु का भजन करना चाहिए। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—-

भैया नर तन सों दूसर न तन मिलिहैं ।
लाख चौरासि योनी में भटकत फिरे,
कहिं सुख ना मिले ना आराम मिले,
नर तन के बिना ना चैन मिलिहैं ।
भैया नर तन सों दूसर………..
याचना नर तन की तो करते सभी,
किसी बिरले को मिलता कदाचित कभी,
नर तन सों न पावन कोइ तन मिलिहैं ।
भैया नर तन सों दूसर………..
नरक स्वर्ग की तो है सीढ़ी यही,
मोक्ष का द्वार भी तो यही है यही,
नर तन से हीं साधन का फल मिलिहैं ।
भैया नर तन सों दूसर………..
नर तन को तु पा कर भजन कर लो,
सत्कर्मों से जीवन सुफल कर लो,
‘ब्रह्मेश्वर’ भजन बिन न कल मिलिहैं ।
भैया नर तन सों दूसर………..

कल = चैन

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र