द्रौपदी ने जब आर्त होकर प्रभु को पुकारा तो प्रभु ने उसकी लाज रखी। प्रस्तुत है द्रौपदी चीरहरण पर मेरी ये रचना:—
राखहु लाज हमार प्रभू जी,
राखहु लाज हमार ।
बीच सभा में दुष्ट दुशासन,
खींचत चीर हमार प्रभू जी,
राखहु लाज हमार ।
राखहु लाज हमार………
भिष्म द्रोण गुरु कृपाचार्य सब,
बैठे रहे निहार प्रभू जी,
राखहु लाज हमार ।
राखहु लाज हमार………
पाँच पती बैठे मनमारी,
केहू न राखनहार प्रभू जी,
राखहु लाज हमार ।
राखहु लाज हमार………
आरत बचन सुनी जब प्रभू ने,
दिन्हीं बसन पट डार प्रभू जी,
राखहु लाज हमार ।
खैंचत खैंचत चीर घटे ना,
गया दुशासन हार प्रभू जी,
राखहु लाज हमार ।
राखहु लाज हमार………
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र