श्रीकृष्ण हरे श्रीराम हरे……ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है मेरी रचना संकीर्तन श्रीकृष्ण हरे श्रीराम हरे :—–

श्रीकृष्ण हरे श्रीराम हरे ।
बिदुरानी के छिलके खाए ,
द्रुपदसुता की लाज बचाए ,
बिप्र सुदामा के तंडुल का ,
भोग लगाए हरे हरे ।
श्रीकृष्ण हरे श्रीराम हरे…..
गौतम नारि अहिल्या तारे ,
अधम नीच असुरन्ह संहारे ,
शबरी के जूठे बेरों को ,
प्रेम से खाए हरे हरे ।
श्रीकृष्ण हरे श्रीराम हरे…..
शरणागत के पालनहारे ,
दीनबन्धु जगतारनहारे ,
बन्दर भालू कोल किरातन्हिं ,
गले लगाए हरे हरे ।
श्रीकृष्ण हरे श्रीराम हरे…..

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र