जब विवाह के पश्चात् सीता जी विदा होने लगीं तो वहाँ ऐसा कारुणिक दृश्य उपस्थित हो गया कि मनुष्य की कौन कहे पशु पक्षी भी बिलखने लगे। सीता जी जो तोता मैना पाल रखे थे वे भी विलाप करने लगे। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—-—
सिया सजना के संग में ,
अवध को चली ।
रोवैं बाप महतारी ,
जिनके रहली दुलारी ।
आजु सुन होइ गैलें घर ,
अगँनवाँ गली ।
सिया सजना के संग में……..
छुटली सखिया सहेली ,
जिनके संग बर्षों खेली ।
आजु सबके सनेहिया ,
बिसराइ के चली ।
सिया सजना के संग में……..
तोता मैना जेहि पाली ,
बिलखत घर भैलें खाली ।
बिलखत सिया सुकुमारी ,
चली पिय की गली ।
सिया सजना के संग में….
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र