प्रभु श्री राम बन में चले गए हैं । माता कौशल्या विरह वेदना से ब्याकुल हो कर बिलाप कर रही हैं । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–—
रघुबर बनवाँ के गैलें कवन रहिया ।
बनवाँ भयानक और कठिन बा धरतीया ,
कैसे बितइहें रघुबर दिनवाँ और रतीया ,
कैसे चलिहें डगरिया पग में नाहीं पनहिया ।
रघुबर बनवाँ के गैलें……………
भैलें उदास अवध नर नारी ,
बिरह बियोग दुसह दुख भारी ,
बिरह के अगिया में जरेला छतीया ।
रघुबर बनवाँ के गैलें……………
सिया राज दुलारी हई अति सुकुमारी ,
रखनी गोदिये हींड़ोला पलंग पैसारी ,
कबहूँ नाहिं टकसवली दिया के बतीया ।
रघुबर बनवाँ के गैलें……………
लछुमन प्रान पीयारा मोरे अँखियन के तारा ,
रहलें उनसे महलिया अँगन उजियारा ,
कैसे कटिहें लखन बिन बिरह के रतीया ।
रघुबर बनवाँ के गैलें……………
एक पल मोरे एक युग बीते ,
दिन और रात कलप सम बीते ,
न जाने मोरे राम अईहें कहीया ।
रघुबर बनवाँ के गैलें…………..
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र