अइलें रघुकुल ललनवाँ अवध नगरी……- ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

श्रीराम जी का जन्म हुआ है, अयोध्या में उत्सव मनाया जा रहा है, राजा दशरथ और सभी रानियाँ अन्न, धन, वस्त्र, सोना, चांदी, रत्न , गाय, हाथी, धोड़ा आदि लुटा रहीं हैं और जो पा रहा है वह भी अपने पास नहीं रखता है, वह भी लुटा देता है। अवध में बधाई बज रही है, देवगण प्रभु की स्तुति कर के फूल की वर्षा कर रहे हैं इस प्रकार अयोध्या में अपरिमित आनन्द छाया हुआ है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी ये रचना:—-

अइलें रघुकुल ललनवाँ अवध नगरी।
दशरथ लुटावेलें अन धन सोनवाँ,
कोशिला लुटावेली कंगन मुँदरी।
अइलें रघुकुल ललनवाँ………
सुमित्रा लुटावेली कपिल धेनु गैया,
कैकेई लुटावेली रतन गगरी।
अइलें रघुकुल ललनवाँ………
घर घर अवध में बाजे बधैया,
जे जेही पवलें लुटावैं सगरी।
अइलें रघुकुल ललनवाँ………
सुर नर मुनीजन आरती उतारें,
बरसावैं फुल भरि भरि अँजुरी।
अइलें रघुकुल ललनवाँ………

 

रचनाकार

  ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र