चुनाव आया………- डॉ प्रशान्त करण

“क्या रामलाल जी? आज अचानक कमीज-पतलून छोड़कर सीधे श्वेत कुर्ता-धोती के परिधान में आ गए?” शशि बाबू ने टोक दिया।

“रामलाल – अरे शशि बाबू, आप? कब आए न्यूज़ीलैंड से?”

“शशि बाबू – हमारी छोड़िए, आपने मेरे प्रश्न का उत्तर नहीं दिया।”

“रामलाल – कल ही खादी मेले में छः सेट खरीदवाया है।”

“शशि बाबू – खरीदवाया मतलब?”

“रामलाल (झेंपते हुए) – आप तो जानते हैं कि मैं अपने से आजतक कुछ नहीं खरीदता। बस समझिए कि खरीदने वाले ने खरीद दिया।”

“शशि बाबू – लेकिन खरीदवाया ही तो खादी का सफेद कुर्ता-धोती ही क्यों? बढ़िया ब्रांडेड कमीज, पेंट और कुछ महंगा लेते।”

“रामलाल – चुनाव आ गया न। सुनील बाबू को चुनाव लड़ना है न। वही इन वस्त्रों के लिए जजमान बने।”

“शशि बाबू – आप तो कल सुबह वर्तमान विधायक के साथ घूम रहे थे। क्या खरीदवाया?”

“रामलाल – खरीदवाया कुछ नहीं। बस मेरे नाम से एक महंगी वाली चार सौ सीसी की फटफटिया बुक हुई है। मात्र ढाई लाख से बोहनी हुई। परसों आ जाएगी।”

“शशि बाबू – और कल शाम को तो पिछले चुनाव के उनके निकटतम विरोधी के साथ थे। उनसे क्या लिया?”

“रामलाल – आप मेरे बारे में बहुत जानकारी रखने लगे हैं। अच्छी बात नहीं है। अपने काम से काम रखिए। नहीं तो महंगा पड़ेगा!”

“शशि बाबू – ज्यादा घुड़की मत दीजिए। बताइए भी।”

“रामलाल – कल शाम को उन्होंने सिर्फ सात लाख अग्रिम मेरे लिए एक फ्लैट का दिया है।”

“शशि बाबू – देखिए रामलाल जी, वैसे तो आप बहुत अनुभवी हैं, लेकिन आपकी सोच एकदम चिन्‍दी है। अरे, बड़ा सोचिए। बड़ा कर डालिए।”

“रामलाल (नरम पड़ते ही हाथ जोड़कर) – प्रभु! आप ही ज्ञान दीजिए।”

“शशि बाबू – हाँ तो सुनिए। आप पहले लक्ष्य तय कीजिए। आप यह भी तय कीजिए कि आपकी जेब में कितने वोट हों।”

“रामलाल (टोकते हुए) – आप यहाँ आते कम हैं। जानते नहीं हैं कि शहर के ठीक बाहर तीनों किनारों पर सरकारी जमीन पर हमने चार साल में धीरे-धीरे झुग्गी-झोपड़ी लगवाई है और लोगों को बसाया है। कुल छः हजार लोगों के नाम मतदाता सूची में मेहनत कर चढ़वाए हैं। वे वोट हमारे इशारे पर पड़ेंगे।”

“शशि बाबू – बस, आप अब हल्ला बारह हजार वोटों का करें। फिर चुनाव तक अपने आय का लक्ष्य निर्धारित करें। वह जो फ्लैट बुक हुआ है, उसका अब बाकी कितना देना पड़ेगा?”

“रामलाल – चालीस लाख और।”

“शशि बाबू – और मुख्य बाजार में एक दस बाई दस की दुकान की कितनी पगड़ी और कितना मासिक किराया होगा?”

“रामलाल – एक जगह है। सात लाख पगड़ी और मासिक किराया पंद्रह हजार है।”

“शशि बाबू – आपका लक्ष्य पचास लाख आय का होना चाहिए। आप तीन ही उम्मीदवार पर केंद्रित कीजिए। वर्तमान से पच्चीस, उसके निकटतम प्रतिद्वंद्वी से बीस और अन्य एक से पाँच। इसमें सभा करवाने, प्रचार के लिए घोड़ा-गाड़ी, खाने-पीने और अंतिम समय पर नगद के लिफाफे, दारू की बोतल और चावल के बोरे बंटवाने का ठेका लीजिए। एक काम का ठेका एक ही से। पहले से योजना बना लीजिए, आदमी तय कर लीजिए। गैरेज वाले, टेंट हाउस, चावल और दारू के थोक व्यापारियों से अभी सस्ते दर पर रेट तय कर उधारी माल रखवा लीजिए। आदमियों को गढ़ लीजिए कि मजदूरी साढ़े तीन सौ, कम से कम सौ आदमी तय होने चाहिए। दो-तीन दिन इसी में लगिए।”

“रामलाल (शशि बाबू के पैर पकड़ते हुए) – प्रभु, आप धन्य हैं। आपने मेरी आँखें खोल दीं। प्रभु, चुनाव तक तो रुक जाइए।”

“शशि बाबू – नहीं, हम तो परसों क्रिकेट मैच के बाद लौट जाएंगे। अगली बार आएंगे तो आप ही आवाभगत का सारा भार उठाइएगा।”

शशि बाबू के जाते ही रामलाल चुपचाप चुनाव में अपनी तैयारी शशि बाबू के बताए अनुसार करने में लग गए हैं।