जब शिव जी ने सुना कि भगवान राम का जन्म हो गया है तो दर्शन की लालसा से ज्योतिषी का वेष बना कर अवध की गलियों मे घूमने लगे । कौशल्या जी की एक दासी ने रानी को यह बात बताई । रानी ने ज्योतिषी को महल में बुलवा लिया । चरण पखार कर सुन्दर आसान पर बैठाया, प्रेम से भोजन कराया और चारो पुत्रों को ज्योतिषी जी के चरण पर रख कर भविष्य पूछा । ज्योतिषी बने शिव जी बार बार चारो पुत्रों को गोद में ले कर एक टक इस अलौकिक रूप को निहार रहे हैं । इतने मगन हैं कि शरीर की सुध भूल गए हैं । फिर बहुत प्रकार से चारो पुत्रों का भविष्य बता कर प्रभु के बाल स्वरूप को हृदय में धारण कर अपने लोक को गए । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
अवध में गुनी एक आयो जी ।
नाम बतावत शंकर आपनु ,
तेज पुंज दमकत दुति आननु ,
अगम जनायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
रानी कौशल्या महल बुलवायो ,
चरन पखारि आसन बैठायो ,
भोग लगायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
चारहु सुत चरनन पर राखी ,
आगमी अगम बहू विधि भाखी ,
देखि लुभायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
लै लै गोद चन्द्रमुख निरखत ,
छायो नयन जल तनु सुधि विसरत ,
उर लपटायो जी ।
अवध में गुनी एक…………..
उर धरि बाल छवी द्विज शंकर ,
बार बार चरनन सिरु धरि कर ,
सदन सिधायो जी ।
अवध में गुनी एक………….
गुनी = ज्योतिषी , दुति = कान्ति , आननु = मुख
आगमी = ज्योतिषी , अगम = भविष्य , सदन = घर
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र