प्रभु श्रीराम विवाह मंडप में हैं और सखियाँ उनकी शोभा का वर्णन कर रही हैं। कहतीं हैं कि हे साँवरे! तुम्हारी सुहावनी साँवली सूरत और मोहनी मूरत मन को मोह रही है। तुम्हारी मीठी बोली, मधुर मुस्कान और चंचल चितवन मन को बहुत भा रहा है। इस प्रकार सखियाँ दुल्हा राम की अलौकिक सुन्दरता पर मोहित हैं और परम सुख को प्राप्त कर रहीं हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
दुलहा साँवली सुरतीया सुहावन लागै हो । 
तोहरी मोहनी मुरतीया मनभावन लागै हो ।। 
दुलहा साँवली सुरतीया………… 
सिर पर मौर झालरी शोभत , 
चन्दन तिलक जगत मन मोहत , 
पीली रंग धोतीया सुहावन लागै हो । 
मनभावन लागै हो । 
दुलहा साँवली सुरतीया………… 
अंग अंग आभूषण धारे ,
चरन महावर रचहीं सँवारे , 
मधुरी बचनियाँ सुहावन लागै हो । 
मनभावन लागै हो । 
दुलहा साँवली सुरतीया………… 
चारू चन्द्रमुख चंचल चितवन , 
कोटिस कामदेव छवी भंजन , 
मधु मुस्कनियाँ सुहावन लागै हो । 
मनभावन लागै हो । 
दुलहा साँवली सुरतीया………...
रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

 
							 
 
         
 
        