प्रभु मोरे माँगत हौं कछु दीजै…………..ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है मेरी ये रचना जिसमें मैं प्रभु से कुछ माँग रहा हूँ। देखिये क्या क्या माँग रहा हूँ :—–

प्रभु मोरे माँगत हौं कछु दीजै ।
नहिं माँगौं मैं माल खजाना ,
निर्मल बुद्धी दीजै ।
प्रभु मोरे माँगत हौं………..
कर सहस्र देहु दान करन को ,
चरन तिरथ जायन को ।
मुख सहस्र हरि भजन करन को ,
नयन हरी दर्शन को ।
प्रभु मोरे माँगत हौं………..
कान सहस हरि कथा श्रवन को ,
उर रघुनाथ बसन को ।
शीश देहु गुरु चरन परन को ,
तन उपकार करन को ।
प्रभु मोरे माँगत हौं………..
पुत्र देहु प्रभु श्रवन कुमारा ,
भाई भरत समाना ।
स्वामी तुम सम माँगउँ प्रभु जी ,
सेवक कपी समाना ।
प्रभु मोरे माँगत हौं………..
जो एहि तन सतकर्म न होई ,
भजन न होई भाव न होई ।
ऐसो तन प्रभु कबहुँ न दीजै ,
पावै गति अधमन्ह को ।
प्रभु मोरे माँगत हौं………..

 

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र