मनुष्य करोड़ों उपाय करले पर बिना प्रभु के भजन के भवसागर पार नहीं कर सकता। जप तप योग नियम व्रत ध्यान इस कलियुग में हो नहीं पाएगा बस भजन हीं एक आधार है भवसागर पार उतरने का इसलिए हे सज्जनों प्रभु का भजन करो। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :———
नर कोटिस जतन करे ,
भजन बिन भवसागर न तरे ।
जप तप जोग नियम ब्रत ध्याना ,
कलियुग सम्भव नहिं जग जाना ,
नामहिं हृदय धरे ।
भजन बिन भवसागर न तरे ।
नर कोटिस जतन करे…………
काम क्रोध मद लोभ दंभ सब ,
छाए हुए हैं सकल जगत अब ,
सब तजि भजन करें ।
भजन बिन भवसागर न तरे ।
नर कोटिस जतन करे…………
प्रभु का नाम है एक अधारा ,
जेहिके भज नर उतरहिं पारा ,
राम राम भज रे ।
भजन बिन भवसागर न तरे ।
नर कोटिस जतन करे………….
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र