राम राम बोलने से प्राणी मात्र के प्राणों में राम रस का संचार हो जाता है इसलिए हे सज्जनों राम का भजन करो। राम राम बोलने से ममता और मोह की जो आँखों पर पट्टी पड़ी है वह खुल जाती है। मन में जो मैल जमी होती है वह धुल जाती है। चार दिन की तो यह जिन्दगी है रे मूर्ख प्राणी इसे क्यों व्यर्थ गवाँ रहा है ? यह जीवन बड़ा अनमोल है प्यारे इसे सार्थक करलो। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
बोल बोल भैया मोरे, राम राम बोल रे ।
प्राणियों के प्राणों में, राम रस घोल रे ।
बोल बोल भैया मोरे………..
तूने ओढ़ रख्खी प्यारे, ममता कि खोल रे ,
त्याग त्याग ममता प्यारे, हरि नाम बोल रे ।
बोल बोल भैया मोरे………..
अँखियों पै मोह कि पट्टी, मन में तेरे झोल रे ,
खोल खोल भैया मोरे, मन कि ग्रंथि खोल रे ।
बोल बोल भैया मोरे………..
चार दिन कि जिन्दगी है, चार दिन का खेल रे ,
काहें को गवाँए मूरख, जीवन अनमोल रे ।
बोल बोल भैया मोरे………..
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र