हमरा के छोड़ि के ना जैह…….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रभु श्रीराम ने वन नहीं जाने के लिए बहुत प्रकार से सीता जी को समझाया। वन के भयानक दुख को बताया पर सीता जी नहीं मानी। प्रभु के एक एक बात का उत्तर दे रहीं हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी ये रचना। देखिए सीता जी प्रभु को किस प्रकार उनके हर बात का उत्तर दे रही हैं :—–

हमरा के छोड़ि के ना जैह मोरे स्वामी हो ,
हम त जीयते मरि जाइब हे स्वामी ।
बन देबी देवता मोर सास ससुर होईहें हो ,
बन हीं अवध के निवास हे स्वामी ।
हमरा के छोड़ि के ना जैह……….
बन के पशू सब होईहें कुटुम्बी हो ,
फुस कुटिया महल समान हे स्वामी ।
हमरा के छोड़ि के ना जैह……….
कुश के चटैया स्वामी मखमल के सेजीया हो ,
तोहरी चरनियाँ सुख के धाम हे स्वामी ।
हमरा के छोड़ि के ना जैह……….
मन त लगल रही रउरे चरनियाँ हो ,
ना लागी भुखवा पीयास हे स्वामी ।
हमरा के छोड़ि के ना जैह……….
दिन रात बीति जाई रउरे सेवा में हो ,
दुखवा के काहाँ एहसास हे स्वामी ।
हमरा के छोड़ि के ना जैह……….
नाथ अगर संग में देहिया ना जाई हो ,
जैहैं परनवें तब साथ हे स्वामी ।
हमरा के छोड़ि के ना जैह……….

 

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

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