राधा कहती हैं कि हे कन्हैया तुम्हारी मुरली तो मेरी शौतन हो गई है। दिन रात तुम इसे अपने अधरों पर धारण किए हुए रहते हो और मुझे भूल जाते हो। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
कन्हैया तेरी मुरली शौतन भई ।
सात सुर सात राग,
हिय में जरावै आग,
जनम कि बैरन भई ।
कन्हैया तेरी मुरली…………..
जब जब तु मोहन मुरलिया बजावत,
बैरन मुरलिया मोहे तड़पावत,
निन्दिया मोर नैनन गई ।
कन्हैया तेरी मुरली…………..
अधरन्ह पर धारत हो निश दिन मुरलिया,
राधा को भूल गए बाँके सँवरिया,
राधा पराई भई ।
कन्हैया तेरी मुरली………….
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र