भगवान राम बाल्मीकि आश्रम मे बाल्मीकि मुनी के दर्शन के पश्चात उनसे विदा माँगी और कहा कि मुझे वैसा स्थान बतलाईये जहाँ मैं कुछ दिन तक वास कर सकूँ । मुनि जी ने कहा कि हे प्रभु आप हीं बता दिजीये कि आप कहाँ नहीं हैं । फिर भी आपने पूछा तो मैं बता रहा हूँ कि आप कहाँ कहाँ निवास करें । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी ये रचना:—–
हम बतावतानी रउरा के जगहिया ए प्रभू जी ,
ओहिजे महल बनाईं रघुबीर ।
जिनके मन हरि चरनन लागे ,
जे काम क्रोध सब त्यागे ,
जिनकर कनवाँ राउर भजन से ना अघाए ए प्रभू जी ,
उनके मन में बसीं ए रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जे गुरु ब्राह्मण के पूजे ,
रउरा छोड़ भरोस न दूजे ,
जिनकर अँखिया रउरा दर्शन के पियासी ए प्रभू जी ,
उनके हृदय बिराजीं रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जिनके चरन तिरथ में जाए ,
जिनके राम नाम मन भाए ,
जे रउरे के समर्पित कर के खाए ए प्रभू जी ,
उनके हृदय बसीं ए रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जे पर तिय माता जाने ,
जे पर धन बिष सा माने ,
जे पर सुख देखि हरषाए ए प्रभू जी ,
उनके मन में बिराजीं रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जिनके राम भक्त लगे प्यारे ,
सब कुछ त्याग प्रभू को धारे ,
जिनकर जिभिया निशि दिन हरि गुन गाए ए प्रभू जी ,
उनके मन में बसीं ए रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
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रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र