ओहिजे महल बनाईं रघुबीर….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

भगवान राम बाल्मीकि आश्रम मे बाल्मीकि मुनी के दर्शन के पश्चात उनसे विदा माँगी और कहा कि मुझे वैसा स्थान बतलाईये जहाँ मैं कुछ दिन तक वास कर सकूँ । मुनि जी ने कहा कि हे प्रभु आप हीं बता दिजीये कि आप कहाँ नहीं हैं । फिर भी आपने पूछा तो मैं बता रहा हूँ कि आप कहाँ कहाँ निवास करें । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है भोजपुरी में मेरी ये रचना:—–

हम बतावतानी रउरा के जगहिया ए प्रभू जी ,
ओहिजे महल बनाईं रघुबीर ।
जिनके मन हरि चरनन लागे ,
जे काम क्रोध सब त्यागे ,
जिनकर कनवाँ राउर भजन से ना अघाए ए प्रभू जी ,
उनके मन में बसीं ए रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जे गुरु ब्राह्मण के पूजे ,
रउरा छोड़ भरोस न दूजे ,
जिनकर अँखिया रउरा दर्शन के पियासी ए प्रभू जी ,
उनके हृदय बिराजीं रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जिनके चरन तिरथ में जाए ,
जिनके राम नाम मन भाए ,
जे रउरे के समर्पित कर के खाए ए प्रभू जी ,
उनके हृदय बसीं ए रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जे पर तिय माता जाने ,
जे पर धन बिष सा माने ,
जे पर सुख देखि हरषाए ए प्रभू जी ,
उनके मन में बिराजीं रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
जिनके राम भक्त लगे प्यारे ,
सब कुछ त्याग प्रभू को धारे ,
जिनकर जिभिया निशि दिन हरि गुन गाए ए प्रभू जी ,
उनके मन में बसीं ए रघुबीर ।
ओहिजे महल बनाईं…………
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रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र