प्रभु अपने भक्तों की आर्त पुकार सुन कर अवश्य हीं उसकी रक्षा करते हैं । द्रौपती की आर्त पुकार सुन कर प्रभु ने उसकी लाज रखी । इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :———
राखहु लाज हमार प्रभू जी , राखहु लाज हमार । बीच सभा में दुष्ट दुशासन , खींचत चीर हमार । प्रभू जी राखहु लाज हमार । राखहु लाज हमार………… भिष्म द्रोण गुरु कृपाचार्य सब , बैठे रहे निहार । प्रभू जी राखहु लाज हमार । राखहु लाज हमार………… पाँच पती बैठे मन मारी , केहु न राखनहार । प्रभू जी राखहु लाज हमार । राखहु लाज हमार………… आरत बचन सुनी जब प्रभु ने , लिन्हीं बिरद सम्हार । प्रभू जी राखहु लाज हमार । राखहु लाज हमार………… खैंचत खैंचत चीर घटे ना , गया दुशासन हार । प्रभू जी राखहु लाज हमार । राखहु लाज हमार………… भक्त की लाज रखी गिरधारी, माधव मदन मुरार । प्रभू जी राखी लाज हमार । राखी लाज हमार……….