जब प्रभु श्रीराम वन के लिए प्रस्थान किए ऐसा हृदयविदारक दृश्य उत्पन्न हो गया जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। राजा दशरथ राम राम कह कर पृथ्वी पर गिर कर मूर्छित हो गए , माता कौशल्या और माता सुमित्रा छाती पीट पीट कर रोने लगीं। कुटुम्बी, अवधवासी सभी बिलखने लगे। मनुष्य तो मनुष्य पशु पक्षी भी व्याकुल हो कर बिलखने लगे। सभी राम विरह की आग में जलने लगे। लोग कैकेई को गाली देने लगे। राजतिलक के लिए जो साज सजाया गया था वह सब धूमिल हो गया। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :——
अवध में आग बिरह के लागल । चलत राम बन अवध अनाथा , धूमिल साज जे साजल । राजा मुरछित राम राम कहि , मैया के धीरज भागल । अवध में आग बिरह के………. पुरजन परिजन ब्याकुल रोवैं , केहिके नजर है लागल । लोगन्हिं देत कैकेइहिं गारी , का तोरे मन में जागल । अवध में आग बिरह के………. महल उदास उदास अवधजन , भूत ने डेरा डालल । पशु पंछी सब ब्याकुल बिलखत , नैनन निन्दिया भागल । अवध में आग बिरह के……….