जब मुरलीमनोहर कृष्ण की मुरली बजने लगती थी तब राधा मुरली की मधुर धुन सुनकर सुधबुध खोकर नाचने लगती थी। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—-
बाजी बाजि रे मुरलिया बाजी मोहन की । मुरली कि धुन सुनि निकली राधिका, पायल छम छम बाजी रे । बाजी बाजि रे मुरलिया………. मुरली कि धुन पर थिरकत राधा, सरगम का सुर साजी रे । बाजी बाजि रे मुरलिया………. नाचत नाचत सुधिया बिसर गइ, हरि चरनन चित लागी रे । बाजी बाजि रे मुरलिया………. राधा कृष्ण का प्रेम अलौकिक, ‘ब्रह्मेश्वर’ मन भ्राजी रे । बाजी बाजि रे मुरलिया……….