भगवान श्रीकृष्ण गोकुल छोड़ कर चले गए हैं और इधर राधा जी कृष्ण विरह में व्याकुल विलाप कर रहीं हैं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
लागै न जियरा हमार हो,
मोहना नाहिं आए ।
कहिके गए श्याम, ऐबो हम परसों ।
दिनवाँ गिनत मोरा, बीत गयो बरसों ।।
बहे अँखियन से अँसुअन की धार हो,
मोहना नाहिं आए ।
लागै न जियरा हमार हो…….
जबसे गए श्याम, सुधियो न लिन्हीं ।
चिठ्ठी न पत्री, संदेशवो न दिन्हीं ।।
बिरह के दुखवा अपार हो,
मोहना नाहिं आए ।
लागै न जियरा हमार हो…….
काहे को जोड़ी, पिरितिया मैं तो से ।
मोहनी सुरतिया, न बिसरे है मो से ।।
कैसे धरूँ धीर धार हो,
मोहना नाहिं आए ।
लागै न जियरा हमार हो…….
कवने कसुरवा, हरी विसरायो ।
पल पल छिन छिन, हमें तड़पायो ।।
जीवन कि बगिया उजार हो,
मोहना नाहिं आए ।
लागै न जियरा हमार हो…….
केहि से कहूँ मैं जियरा की बतियाँ ।
काटे कटे नाहिं दिनवाँ औ रतियाँ ।।
कौन करिहैं ‘ब्रह्मेश्वर’ सम्हार हो,
मोहना नाहिं आए ।
लागै न जियरा हमार हो…….
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र