श्री गंगा स्तुति —–
नमामि नमामि नमन मातु गंगे ।
विष्णु चरण से निकलि मातु गंगे,
महेश्वर जटा में उलझि मातु गंगे ।
नमामि नमामि नमन………
भगीरथ के तप बल धरा पर तु आई,
हरिद्वार परयाग काशी बसाई ।
पापिन्ह के पाप धुली मातु गंगे ।।
नमामि नमामि नमन………
सिध छेत्र आई मुनी महिमा गाई,
राम लक्ष्मण को महिमा गा गा कर सुनाई ।
‘ब्रह्मेश्वर’ के द्वारे आई मातु गंगे ।।
नमामि नमामि नमन………
सोन सरयू से मिल कर त्रिवेणी बनाई,
पाटलीपुत्र पावन नगर तु बसाई ।
जह्नु आश्रम पधारी मेरी मातु गंगे ।।
नमामि नमामि नमन………
पी गए जब जह्नु तुम्हें मातु गंगे,
मची हाहाकार जगत मातु गंगे ।
जंघा से निकाले तुम्हें मातु गंगे ।।
नमामि नमामि नमन………
जाह्नवी नाम पा कर चली मातु गंगे,
गंगासागर पहुँच गइ मेरी मातु गंगे ।
तारी सगर राजपुत्रों को गंगे ।।
नमामि नमामि नमन………
तीन लोकों में बहती त्रिपथगा कहाई,
अपरपार महिमा तेरि गाई न जाई ।
नमन वन्दन जगतारिणी मातु गंगे ।।
नमामि नमामि नमन………
सिध छेत्र = सिद्धक्षेत्र, कौशिक आश्रम बक्सर।
ब्रह्मेश्वर के द्वारे = गंगा मेरे घर के पास से गुजरी है।
त्रिपथगा = तीन लोकों (देवलोक, पृथ्वी लोक, पाताल लोक) में बहने वाली।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र