रिमझिम बरसे बदरिया….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

एक पत्नी का पति परदेश से घर आया है। बरसात का मौसम है। बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है, रिमझिम वर्षा बरस रही है। दादुर, मोर, कोयल, पपीहा बोल रहे हैं। पत्नी अपने प्रियतम के प्रेम में मगन अनेक कल्पनाएँ कर रही है। उसके मनोभावों पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——-

रिमझिम बरसे बदरिया,
घर आए सँवरिया ।
बदरा गरजे बिजुरी चमके,
घन घमंड नभ मेघा बरसे,
झर झर झकोरे बयरिया ।
घर आए सँवरिया ।
रिमझिम बरसे बदरिया…..
दादुर मोर पपीहा बोले,
सबके मन में मधुरस घोले,
कुह कुह पुकारे कोयलिया ।
घर आए सँवरिया ।
रिमझिम बरसे बदरिया…..
अमुअन डार झुलनवाँ डारी,
पिया संग झुलबो रैना सारी,
हिलमिल के गैबो कजरिया ।
घर आए सँवरिया ।
रिमझिम बरसे बदरिया……

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र