सखि री कंत न आए ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

एक विरहन अपने प्रियतम के वियोग मे व्याकुल प्रियतम की प्रतिदिन बाट निहार रही है। बावली हुई प्रियतम की खोज में बन बन गली गली भटकती फिर रही फिर निराश होकर सखी से अपनी विरह वेदना सुना रही है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:——–

सखि री कंत न आए ।
दिन बीतत मोरे बाट निहारत,
रैना नींद न आए ।
सखि री कंत न आए…….
जब से गए खबर नहिं लिन्हीं,
मोहे दियो विसराए ।
सखि री कंत न आए…….
गलि गलि खोजूँ बन बन खोजूँ ,
पिया नजर नहिं आए ।
सखि री कंत न आए…….
काहे जोड़ी प्रीत पिया से,
अब मोरे मन पछताए ।
सखि री कंत न आए…….
निर्मोही भए मोर साँवरिया,
दरश लागि तरसाए ।
सखि री कंत न आए…….

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

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