एक पत्नी का पती परदेस से घर आया है और पत्नी उत्साह से भरी कहती है कि बाग में झूला लगाऊँगी और आज पिया के संग झूला झूलूँगी। बरसात का सुहावना मौसम है, दादुर मोर पपीहा बोल रहे हैं, झर झर पवन बह रहा। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना कजरी गीत:——-
कि हरि हरि बगिया में डलबो झुलनवाँ,
पिया घर ऐलैं ए हरी ।
कि हरि हरि पिया संग झुलबो झुलनवाँ,
पिया घर ऐलैं ए हरी ।।
कि हरि हरि बगिया में………..
कि हरि हरि बदरा गरजत बिजुरी चम चम,
चमकत ए हरी ।
कि हरि हरि झर झर बहे पवनवाँ,
पिया घर ऐलैं ए हरी ।
कि हरि हरि बगिया में………..
कि हरि हरि दादुर मोर पपीहा,
शोर मचावैं ए हरी ।
कि हरि हरि कुह कुह पुकारत कोयलिया,
बोलत मिठी बोलिया ए हरी ।
कि हरि हरि बगिया में………..
कि हरि हरि पिया संग झूलत झुलनवाँ,
कजरिया गैबो ए हरी ।
कि हरि हरि होइहैं मगन मोर मनवाँ,
पिया घर ऐलैं ए हरी ।
कि हरि हरि बगिया में……..
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र