उजड़ा बाग —-
कल चमन था ,
आज उजड़ा बाग है ।
थीं गूँजती किलकारियाँ ,
हर रोज मेरे आँगन में ।
कभि नाचती थीं रश्मियाँ ,
इस दिल के मेरे प्रांगण में ।
फिर एक झोंका हवा का ,
इस बेग से आया ।
उड़ गया बसता चमन ,
बस रह गया साया ।
अब तो जिन्दगी में ,
न रोश है न राग है ।
कल चमन था ,
आज उजड़ा बाग है ।
रचनाकार :
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र