लज्जा हीं श्रृंगार नारि का….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

लज्जा हीं श्रृंगार नारि का–

कर सोलह श्रृंगार सजनियाँ,
चली पिया के पास ।
पायल बाज रही है छम छम,
हियरा अती हुलास ।।
खाट डारि कै सोवैं आँगन,
देवर ननदी सास ।
कैसे जाऊँ पास पिया के,
गोरी भई उदास ।।
शनैः शनैः कदम बढ़ावत,
चली रोक कर साँस ।
धक धक धड़कत हृदय धनी के,
पहुँची पिय के पास ।।
लज्जा हीं श्रृंगार नारि का,
कह ‘ब्रह्मेश्वर’ दास ।
जो नारी रह मर्यादा में,
पावै चरनन प्रभू निवास ।।

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र