भजले नाम उदार…..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

भजले नाम उदार–

दुर्लभ पावन नर तन पाया,
जनम अकारथ यूँहिं गंवाया।
अन्त समय जब आया बन्दे,
सिर धुनि धुनि पछताया।
जो भी कछु पल बचा है प्यारे,
जीवन लेहु सुधार ।
छोड़ि कपट चतुराई रे बन्दे,
भजले नाम उदार।

रचनाकार :

ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र