प्रभु से एक विनती कि हे प्रभु मेरे हृदय में अपना घर बनालो। मैं तो जप तप योग पूजा तो कुछ जानता नहीं बस भजन से हीं प्रभु को रिझाना जानता हूँ। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :–
बना लो प्रभू मेरे दिल में ठिकाना ।
ये दिल है तुम्हारा पुरातन घराना ।
बना लो प्रभू मेरे दिल में………..
मैं जानू न जप तप न जोग न पूजा ,
भजन हीं है एक अधार न दूजा ,
भजन से हीं आता प्रभू को रिझाना ।
ये दिल है तुम्हारा पुरातन घराना ।
बना लो प्रभू मेरे दिल में………..
कितने जतन जोग करते मुनीजन ,
देते प्रभू किसी बिरले को दर्शन ,
प्रभू तो दयालू दया के खजाना ,
ये दिल है तुम्हारा पुरातन घराना ।
बना लो प्रभू मेरे दिल में………..
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र