विकास क्षमता का………..प्रशान्त करण

साधो ! क्षमता हो तो विकास के साथ उसका विकास करना होता है. जो विकास के साथ नहीं चलता , विकास उसके साथ नहीं चलता . क्षमता न हो तो विकास कैसा ?

साधो ! हर व्यक्ति में क्षमता होती है . संसार में कोई ऐसा व्यक्ति नहीं जिसमें क्षमता न हो . कक्षा में अपनी प्रतिभा , मेधा से प्रथम आने वाले की क्षमता उसकी मेधा है . परीक्षा में नकल कर उत्तीर्ण होने वाले छात्र की मेधा बिना पकड़े गए नकल करना है . लीक प्रश्नपत्र के भरोसे ऊँचे अंकों के बल पर उत्तीर्ण होने वाले की क्षमता मुँह माँगे मूल्य पर प्रश्नपत्र खरीदना और उसके सही उत्तर शिक्षक से प्राप्त कर रट लेना भी एक क्षमता है . परीक्षा विभाग से साठ -गाँठ कर प्राप्तांक बदलवा लेना भी कम क्षमता नहीं है . जाली अंकपत्र , प्रमाण पत्र बनवाकर नामांकन , नौकरी ले लेना भी अद्भुत क्षमता है . जिस व्यक्ति ने अपनी क्षमता को पहचान लिया तो समझो उसका आधा विकास तो स्वतः हो गया . जो अपनी क्षमता नहीं पहचान पाते , इसके लिए उन्हें दूसरों पर निर्भर होना पड़ता है . प्रारम्भिक समस्या तो क्षमता के पहचान की है . एक प्रसंग सुनो , साधो !

किसी विद्यालय की किसी कक्षा में दस विद्यार्थियों ने सभी शिक्षकों के नाक में दम कर रखा था . सभी के लक्षण भिन्न – भिन्न थे . बाकि सभी मेधावी छात्रों की क्षमता के आधार पर सभी शिक्षकगण कहते कि वे आगे अपनी क्षमताओं के विकास कर समाज में अपनी मेधा के बल पर बहुत अच्छा करेंगे . लेकिन बाकी दस छात्रों की क्षमताओं ने अध्ययन के लिए एक वयोवृद्ध अवकाशप्राप्त अनुभवी शिक्षक को लगाया गया . उन्होंने एक माह की कड़ी मेहनत से उन दसों छात्रों की क्षमताओं को पहचान कर एक अति गोपनीय प्रतिवेदन दिया . जिसे किसी ने लीक कर दिया . इसका सार छात्रवार निम्न प्रकार से था .

पहला छात्र – पिछले सात वर्षों से एक ही कक्षा में अटका था . वह अन्य छात्रों को मार -पीट कर ,डरा – धमकाकर कक्षा के किसी की पुस्तक , उत्तर – पुस्तिका गायब करवाता और उन्हें बेचकर सिनेमा देखता , किसी की टिफिन उड़वाता . डर से कोई मुँह नहीं खोलता . एक दिन पकड़े जाने पर उसने शेष नौ लड़कों को फंसा दिया और स्वयं बच निकला . इस अध्ययन के बाद उसने पढ़ाई छोड़ कर रंगदारी प्रारम्भ की . इस छात्र में सफल नेता बनने की शक्तिशाली क्षमता है .
दूसरा छात्र – यह देर से आने वाले छात्रों से प्रधानाध्यापक के नाम पर पैसे वसूलता , छात्रों की साइकिलें चोरी करवाता , विद्यालय के बेंच कबाड़ी वालों से रात में उठवाकर बेचता , शिक्षकों की पाकेटमारी कराता . स्वयं भोला बनकर मामले पर हल्ला मचवाता . मंतव्य – इस छात्र में पुलिस विभाग में नौकरी करने की क्षमता है .

तीसरे से लेकर छट्ठे छात्र – इन सभी का सभी उपहास उड़ाते , क्या शिक्षक -क्या सहपाठी . सभी धौंस दिखाकर अपना बस्ता ढुलवाते . हुक्म चलाते और हेय दृष्टि से देखते . निर्धन थे . बेचारे कभी किसी की शिकायत नहीं करते , दबते और सहते .समय पर स्कूल फ़ीस जमा करते .मंतव्य – इन चारों छात्रों में उत्कृष्ट मतदाता होने की क्षमता है .

सातवें से लेकर नौवें छात्र – ये सर्वदा साथ रहते . एकदम चुप . दिन भर आनंद लेते . खूब खर्च करते . नबाबी की ठाट में रहते . पढ़ने – लिखने से दूर – दूर तक संबंध नहीं रखते . स्कूटी से आते . हर वर्ष नई स्कूटी बदलते . लेकिन बिना कुछ जाने -पढ़े बहुत अच्छे अंकों से उत्तीर्ण होते . उपरोक्त अंकित पहले और दूसरे छात्र को उपकृत करते रहते . परीक्षा के दो दिन पहले रात में स्कूल के पुस्तकालय में रखे प्रश्न पत्रों को खिड़की के लोहे को खिसकाकर , घुस कर चुरा लेते . उन्हें लेकर कोचिंग संस्थान के एक कुख्यात शिक्षक के पास ले जाकर उत्तर लिखवा लेते . फिर प्रश्नपत्र और उत्तर दोनों पहले से तय विद्यार्थियों को हजार रुपये में बेच देते और स्वयं भी रट्टा मार लेते . मंतव्य – इन छात्रों के गिरोह में प्रश्नपत्र लीक करने और कोचिंग संस्थान चलाने की अद्भुत क्षमता है . ये करोड़ों में खेलेंगे .

साधो ! स्वयं को पहचानो . अपनी क्षमता जानो . उस कौशल का विकास करो . हम भारतवासियों को हर क्षेत्रों में विश्वगुरु बनना है . जिसकी जैसी क्षमता हो , उसी का विकास कर डालो . सबका साथ – सबका विकास !