मनुष्य जब प्रभु के शरणागत हो जाता है तब प्रभु की अपार कृपा होती है। भक्त कहता है कि हे प्रभु मेरी बुद्धि तो छोटी है और आपकी कृपा अपार है। इस छोटी बुद्धि से आपका किस प्रकार गुणगान करूँ ? इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—
प्रभु आपकी कृपा का ,
गुणगान कैसे गाऊँ ।
छोटी है मेरि बुद्धी ,
कुछ भी समझ न पाऊँ ।
प्रभु आपकी कृपा का……..
मैं तो भटक रहा था ,
अँधियार में प्रभू जी ।
नहिं सूझती थीं राहें ,
संसार की प्रभू जी ।
तुने राह जो दिखाई ,
बखान कर न पाऊँ ।
प्रभु आपकी कृपा का……..
मेरि नाव तो पड़ी थी ,
मझधार में प्रभू जी ।
नहिं था कोई खेवैया ,
पतवार ना प्रभू जी ।
तेरी कृपा हुई जब ,
तब मैं उबर जो पाऊँ ।
प्रभु आपकी कृपा का……..
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र