भजो रे मन नारायण श्रीहरी…………ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है मेरी ये रचना जिसमें मैंने भगवान विष्णु के दशावतार का वर्णन किया है:—

भजो रे मन नारायण श्रीहरी ।
मत्स्य रूप जब धरी श्रीहरि ने,
सृष्टि कि रक्षा करी ।
कुर्म रूप में गिरि मंदराचल,
कमठ पीठ धरी ।
भजो रे मन……………
धरि बाराह रुप धरति उधारे,
हिरणाक्ष को मुक्त करी ।
रूप नृसिंह प्रह्लाद उबारी,
हिरनकशिपु को तरी ।
भजो रे मन……………
बामन रूप में बलि को बाँधे,
भृगुपति रूप धरी ।
सहसबाहु का करि संहारा,
पृथ्वी कि भार हरी ।
भजो रे मन……………
राम रूप धरि धरा पर आए,
रावन मुक्त करी ।
कृष्ण रूप में कंस संहारे,
अर्जुन उपदेश करी ।
भजो रे मन……………
बुद्ध रूप धरि जन उपदेशा,
हिंसा दूर करी ।
कल्कि रूप में नारायण ने,
कलियुग पाप हरी ।
भजो रे मन…………….

 

रचनाकार


   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र