एक बार ब्रह्मा, विष्णु और शिव साधु का वेष धारण कर माता अनुसूईया जी के पतिव्रत धर्म की परीक्षा लेने उनके आश्रम पर पहुँचे और पुकार लगाए कि हे साध्वी हम भूखे हैं हमें भोजन कराओ। माता अनुसूईया अपने द्वार पर अतिथियों को देख कर बहुत प्रसन्न हुईं और कहा कि हे महात्माओं आप आसान ग्रहण कीजिये मैं अभी भोजन परोस रही हूँ। साधु बने उन तीनों देवों ने कहा कि हे साध्वी हमलोग तभी भोजन करेगें जब आप निर्वस्त्र होकर हमें भोजन कराएं। उस समय माता अनुसूईया जी के पती अत्रि मुनि भी आश्रम पर नहीं थे। साधुओं की बात सुनकर माता अनुसूईया ने अपनी दिव्य दृष्टि से जान लिया कि ये तीनों सन्यासी ब्रह्मा विष्णु महेश हैं और ये मेरी परीक्षा लेने आये हैं। माता ने कहा कि हे मुनिजनों अवश्य मैं आप सभी को निर्वस्त्र होकर भोजन कराऊंगी। माता ने इन तीनों देवों को अपने योगबल से बालक बना दिया और निर्वस्त्र होकर अपने गोद में लिए अपना दूध पिलाने लगीं। इधर अपने पतियों को बहुत दिनों से न पा कर तीनों देवियाँ खोजते खोजते अनुसूईया जी के आश्रम पर पहुँचीं और देखतीं हैं कि तीनों देव तो बालक बने हुए पलने में खेल रहे हैं। तीनों देवियों ने माता से विनती कर अपने पतियों को मुक्त कराया और इन्हीं तीनों के अंश रूप में माता अनुसूईया के पुत्र रूप में भगवान दत्तात्रेय का अवतार हुआ। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
विष्णु बिरंचि शिव तीनों बने ललना ।
खेल रहें मैया अनुसूईया जी के अँगना ।।
विष्णु बिरंचि शिव………..
दूध पिलावैं मैया अंक से लगावैं मैया,
गोदिया में लै लै के ललना खेलावैं मैया,
तीनों ललना के झुलावैं मैया पलना ।
विष्णु बिरंचि शिव………..
सुरसति लक्ष्मि पार्वति खोजैं बलमा,
आए नहीं कहाँ चलि गए मोरे सजना,
खोजत चलैं बन बन निज बलमा ।
विष्णु बिरंचि शिव………..
खोजत खोजत तीनों देवी पहुँची तहवाँ,
खेल रहें तीनों देव बालक बन के जहवाँ,
गिर परी तीनों देवी मैया जी के चरना,
विष्णु बिरंचि शिव………..
भूल हुई मैया अब मुक्त करो बलमा,
तुम सा बड़ा न सती दीख पड़े जगमां,
मुक्त भए तीनों देव चले निज धमवाँ ।
विष्णु बिरंचि शिव………….
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र