गोपियों के चित्त को चुराने वाले चितचोर कन्हैया को जिस प्रकार गोपियाँ बुलाती थीं उसी प्रकार मैं भी अपनी इस रचना के माध्यम से उस चितचोर को बुला रहा हूँ:—–
चितचोर मोर गलि आना ।
राधा की गलि नित जाते हो,
मेरि गली क्यूँ नहिं आते हो,
एक दिन इधर भी आना ।
चितचोर मोर गलि………..
मेरे भी घर दधि माखन है,
जोर सँगोर के सब राखन है,
आकर उसे चुराना ।
चितचोर मोर गलि………..
ब्रज में मुरली रोज बजाते,
मीठी मधुरी तान सुनाते,
एक दिन इधर बजाना ।
चितचोर मोर गलि………..
गोपिन्ह के तुम चित्त चुराते,
चित्त चुराते अति मन भाते,
मेरा चित्त चुराना ।
चितचोर मोर गलि………..
‘ब्रह्मेश्वर’ है पलक बिछाए,
दर्शन की है आश लगाए,
आकर दरश दिखाना ।
चितचोर मोर गलि………..
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र