तुम कहाँ हो छुपे नन्द नन्दन हरी…….   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है शरणागत भजन के रूप में मेरी ये रचना :—–

तुम कहाँ हो छुपे नन्द नन्दन हरी ।
मैं तो खोजूँ तुझे बन बन और गली ।।
तुम कहाँ हो छुपे……………
द्रौपदी ने पुकारा तो आए हरी ,
जब गज ने पुकारा तो धाए हरी ,
जब मैंने पुकारा न आए हरी ।
तुम कहाँ हो छुपे……………
मेरि अँखिया दरश को है प्यासी हरी ,
निश दिन तड़पत रहत है उदासी हरी ,
कब दर्शन तुम दोगे कृपालू हरी ।
तुम कहाँ हो छुपे……………
अब तो आओ बहुत दिन बीते हरी ,
चैन आए न मन को अब आधो घरी ,
बड़ी छलिया हो गिरधर गिरधारी हरी ।
तुम कहाँ हो छुपे……………

 

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र