हर और हरि अर्थात् भगवान शिव और भगवान विष्णु दोनों की एक साथ वन्दना मेरी इस रचना के माध्यम से :—–
जय हर हरी जय हर हरी ,
जय शम्भु जय जय श्रीहरी ।
एक गौरिपति एक लक्ष्मिपति ,
एक गौर दूजे श्याम री ।
एक सर्प धारे गले में ,
एक सर्प शैय्या सोय री ।
जय हर हरी जय हर हरी………
एक जटा धारे गंग री ,
एक चरन गंगा निःसरी ।
त्रीशूल डमरू एक कर ,
एक चक्रधारी श्रीहरी ।
जय हर हरी जय हर हरी………
एक जगत का संहारकर्ता ,
दूजे पालनहार री ।
द्वय चरण ब्रह्मेश्वर झुकावै ,
शीष बारम्बार री ।
जय हर हरी जय हर हरी………
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रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र