जब नारद जी ने पार्वती जी के माता-पिता को यह बताया कि पार्वती को तो अशुभ अमंगल वेषधारी पति मिलेगा और यह सब गुण शिव जी में है, पार्वती को शिव जी हीं पति रूप में मिलेगें अतः शिव जी की प्राप्ति के लिए पार्वती को तप करने के लिए वन में भेजो तो पार्वती जी की माता बहुत व्याकुल हो कर विलाप करने लगीं तब पार्वती जी ने माता को बहुत प्रकार से समझाया और कहने लगीं कि हे माता मैने एक स्वप्न देखा की एक ब्राह्मण देवता मेरे स्वप्न में आ कर कहने लगे कि हे पार्वती शिव जी हीं तुम्हें पति रूप में मिलेगें यह लेख अमिट है। नारद जी का वचन सत्य है यह जान कर तुम शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए वन में जा कर तप करो। तप से कुछ भी सम्भव है। तप के बल पर ब्रह्मा जगत की रचना, विष्णु पालन और शिव संहार करते हैं। तप के बल पर हीं शेषनाग समस्त पृथ्वी को अपने मस्तक पर धारण करते हैं। सारी सृष्टि तप के आधार पर हीं टिकी हुई है अतः तुम जा कर तप करो।स्वप्न की बात सुन माता मैना का समाधान हो गया। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–
मैया एक सपन हमने देखा ।
बिप्र देव एक सपन में आए ,
कहन लगे बहु बिधि समझाए ,
स्वामी मिलेगें अनोखा ।
सपन हमने देखा ।
मैया एक सपन………..
मिलिहैं पती शिव अवढर दानी ,
जाहु कठिन तप करहु भवानी ,
मिटिहैं न हस्त के रेखा ।
सपन हमने देखा ।
मैया एक सपन………..
तप बल रचहिं प्रपंच विधाता ,
तप बल विष्णु सकल जग त्राता ,
तप बल शंभू संहारा ।
सपन हमने देखा ।
मैया एक सपन………..
तप बल शेष धरइ महि भारा ,
सकल सृष्टि तप के आधारा ,
नारद बचन सत्य लेखा ।
सपन हमने देखा ।
मैया एक सपन………..
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रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र