किन्हिं कठिन तप गिरिजा भवानी……….ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

पार्वती जी के माता पिता ने उन्हें तप करने के लिए वन में भेजा। पार्वती जी ने शिव जी को पति रूप में प्राप्त करने के लिए बहुत कठिन तप किया। एक हजार वर्ष तक कन्द मूल फल खा कर रहीं, सौ बर्षों तक शाक खा कर रहीं, कुछ दिन जल पी कर रहीं, कुछ दिन केवल वायु पी कर रहीं,तीन हजार वर्ष तक सूखे बेलपत्र जो पृथ्वी पर गिरे हुए थे उसे खा कर रहीं फिर उसे भी त्याग दिया और बहुत काल तक उपवास हीं रहीं। उनका शरीर हड्डियों का ढाँचा मात्र रह गया। इनके कठिन तप को देख कर आकाश से ब्रह्मवाणी हुई कि हे पार्वती अब तक ऐसा तप किसी ने नहीं किया। तुम अब इस कठिन तप को त्याग कर घर चली जाओ तुम्हें शिव जी पति रूप में प्राप्त होगें। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना :—–

किन्हिं कठिन तप गिरिजा भवानी ।
होहु पती शिव मन मँह ठानी ।
किन्हिं कठिन तप………..
बरस सहस एक मुल फल खाए ,
शाक खाइ शत बरस बिताए ,
कुछ दिन बारि बयारि के पाना ,
कुछ दिन किये उपवास शिवानी ।
किन्हिं कठिन तप………..
बेलपत्र महि परइ सुखाई ,
सम्बत् तीन सहस सोइ खाई ,
त्यागेउ सोइ सुखानेउ परना ,
कैसो कठिन ब्रत ठानी भवानी ।
किन्हिं कठिन तप………..
छीन भए जब उमहिं शरीरा ,
ब्रह्मवाणि भइ गगन गँभीरा ,
परिहरु क्लेश मिलहिं त्रिपुरारी ,
अस तप काहु न किन्हिं भवानी ।
किन्हिं कठिन तप………..

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रचनाकार

   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र