इधर पार्वती जी शिव जी को पती रूप में प्राप्त करने के लिए तपस्या कर रहीं हैं और उधर शिव जी अखण्ड समाधि में लीन हैं। देवताओं को चिन्ता हुई कि शिव जी जब तक जागेगें नहीं तब तक पार्वती से शिव जी का विवाह कैसे होगा ? तब देवताओं ने कामदेव को शिव जी की समाधि भंग करने के लिए भेजा। विषम वाण और मछली का चिन्ह अंकित ध्वजा धारण करने वाला कामदेव देवताओं के कार्य हेतु मरने को ठान कर अपनी सेना लेकर चला। शिव जी के निकट पहुँच कर अपनी माया फैलाई। बसन्त ऋतु को प्रकट कर दिया, अनेक कामकला में निपुण रमणियों को प्रकट कर दिया जो शिव जी को रिझाने के लिए अनेक कलाएँ दिखाने लगीं। उस समय पुरुष सारे जगत को स्त्रीमय और स्त्रियाँ पुरुषमय देखने लगीं। पशु पक्षी सब अपने संयोग का समय भुला कर संयोग करने लगे। मुनियों के मन को भी कामदेव ने क्षुब्ध कर दिया पर शिव जी पर कामदेव की कोई कला नहीं चली। कामदेव तब क्रोधित हुआ और शिव जी के हृदय में पुष्पवाण मार दिया। शिव जी की समाधि टूटी और सामने कामदेव को देखा। शिव जी ने क्रोधित होकर तीसरा नेत्र खोल दिया और कामदेव जल कर भस्म हो गया। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
कामदेव शिव को लुभाने चला ।
फन्दा बिछाई फँसाने चला ।।
कामदेव शिव को………
मीनध्वज रथ साज, ले अपनी साज बाज ।
हाथ में विषमवाण, मरने का प्रण ठान ।।
लेकर बसन्त कि सेना चला ।
कामदेव शिव को………
प्रकटी रमणियाँ, फैलाई निज माया ।
क्षुब्ध भई सारे जगत की ये काया ।।
दिखावैं रमणियाँ निज काम कला ।
कामदेव शिव को………
पुरुष देखें स्त्रीमय, सारे जगत को ।
नारी सब देखें, पुरुषमय जगत को ।।
आई ये कैसी बला ।
कामदेव शिव को………
पशु पक्षि भूले, रमण के समय को ।
कामदेव क्षुब्ध किया, मुनिजन के मन को ।।
चलि नाहिं शिव जी पर कोई कला ।
कामदेव शिव को………
कला अपनि बिफल देख, कुपित हुआ कामदेव ।
पुष्पवाण मार दिया, ब्याकुल भए महादेव ।।
किसने ये भारी कुचाल चला ।
कामदेव शिव को………
देखा महेश्वर ने, कामदेव सामने ।
तृतीय नेत्र खोल दिया, महादेव शिव ने ।।
कामदेव पल में जला ।
कामदेव शिव को………
विषमवाण = कामदेव पाँच पुष्पवाण धारण करता है।
मीनध्वज = कामदेव।
रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र