कइसन अशुभ अमंगल भेष बा तोहार दुलहा……… ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

शिव जी की बारात पर्वतराज हिमाचल के दरवाजे पर पहुँची। पार्वती जी की माता मैना जी परिछन करने चलीं। जब मैना जी ने शिव जी के विकराल रूप को देखा तो पुत्री का विवाह करने से मना कर दिया तब नारद मुनि और देवसिरा मुनि ने आकर मैना जी को समझाया तब माता मैना दुल्हा शिव जी का परिछन करने चलीं पर फिर शिव जी के भयानक रूप को देख कर कहने लगीं कि ऐसे बर से अपनी पुत्री का विवाह नहीं करूंगी भले पुत्री कुवाँरी रह जाय तब सास का बचन सुनकर शिव जी ने सुंदर रूप धारण कर लिया। माता कहती हैं कि तुम तो बड़े लबार (झूठे) हो जी। तुम्हारा इतना सुन्दर रूप है और तुम झुठ्ठो अमंगल वेष धारण किये थे ? और ऐसा कह कर माता शिव जी का परिछन करने लगीं। इसी प्रसंग पर मेरी ये रचना प्रस्तुत है :—–

कइसन अशुभ अमंगल भेष बा तोहार दुलहा,
कइसे परिछीं हम तोह के गँवार दुलहा ।
सिर पर जटा हाथ तिरशूल,
बदन में असमशान के धूल,
गले नगवा करेला फुफकार दुलहा ।
कइसे परिछीं हम………
नन्दी भृंगी साथ विराजत,
संग में भुत बैताल बा नाचत,
नाचत घुटने पर देइ देइ के ताल दुलहा ।
कइसे परिछीं हम……….
अइसन बर के गौरा न देहब,
चाहे जहर खाई हम लेहब,
भले गौरा रहिहें कुआँर दुलहा ।
कइसे परिछीं हम………
नारद के हम काइ बिगड़नी,
कइलन हमसे अइसन करनी,
नारद गौरा के खोजलें बउराह दुलहा ।
कइसे परिछीं हम………
सुनि के सास बचन त्रिपुरारी,
धइलन सुंदर रूप सवाँरी,
तोहार महिमा बा अगम अपार दुलहा ।
तोहार अशुभ भेष भी मंगल के भंडार दुलहा ।
चल परिछीं हम तोहके लबार दुलहा ।
चल परिछीं हम……….

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रचनाकार

   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र