माता मैना के विलाप को देख कर शिव जी ने सुंदर रूप धारण कर लिया। माता ने सखियों सहित शिव जी का परिछन किया। शिव जी ने पुनः अपना विकराल रूप धारण कर लिया। सखियाँ शिव जी को विवाह मंडप में ले आईं। सखियाँ उनके अद्भुत रूप को देख कर व्यंग्य कर रहीं हैं कि यह दुल्हा तो चलनी का चाला हुआ और सूप का फटकारा हुआ है। इस प्रकार सखियाँ शिव जी के अद्भुत और अलौकिक श्रृंगार का वर्णन करने लगीं। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी ये रचना:—–
चलनी के चालल दुलहा,
सुप के फटकारल हो ।
मड़वा में अइलन शिव,
दुलहा सँवारल हो ।
चलनी के चालल दुलहा…….
साँपे के कुंडल शोभे,
साँपे मऊरिया हो ।
साँपे के माला गले,
बसहा सवरिया हो ।
मड़वा में अइलन शिव,
शोर नगरिया हो ।
चलनी के चालल दुलहा…….
अंग भभूती शोभे,
कटि मृगछाला हो ।
जटवा में गंगा शोभे,
नैन विशाला हो ।
मड़वा में अइलन शिव,
दुलहा निराला हो ।
चलनी के चालल दुलहा…….
दूज चन्दरमा शोभे,
भाल विशाला हो ।
संगवा में नाचत शिव के,
भुत बएताला हो ।
मड़वा में अइलन शिव,
दुलहा निराला हो ।
चलनी के चालल दुलहा…….
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रचनाकार
ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र