मेरी बात ……….. प्रशान्त करण

सम्पूर्ण राष्ट्र में बहुतायत में लोग माननीय प्रधान मंत्री जी के “मन की बात ” कार्यक्रम सुनते हैं. विरोधी दलों और उनके समर्थक इसका उपहास करने में कोई अवसर नहीं खोते. घरों में स्त्रियाँ अपने पति के मन की बात अपनी विलक्षण कल्पना शक्ति से समझती है और उसके सही होने का दावा पूरी सशक्तता से करती रहती है. तंग आपकर बेचारा पति सत्य से कोसों दूर अपनी पत्नी की समझ के अनुसार अपने मन की बात होना शरणागत हो स्वीकार कर लेता है. बेचारा निरीह और करे भी तो क्या करे? उधर अनेक प्रतिभाओं से सम्पन्न, एक से बढ़कर एक ज्ञान में प्रसिद्द विशेषज्ञ पति बेचारा अपनी पत्नी के मन की बात समझ ही नहीं पाता और यह प्रकट करने के उसके मन की बात मन में ही दबकर दम तोड़ देती है.

    विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति, अनुसंधान, खोज, आविष्कार के लिए भारतीय बुद्धि, चाहे वह भारतीय मूल के वैज्ञानिकों की ही क्यों न हो, पूरे ब्रह्माण्ड में प्रसिद्द है. इसी श्रेणी के एक विलक्षण प्रतिभा सम्पन्न अपने भारतीय प्रकांड वैज्ञानिक ने गोपनीय रूप से एक यंत्र तैयार किया, जो इतना आधुनिक, छोटा था कि इसे फोन के अंदर में छिपा रखा जा सकता था. इस यंत्र से जिसकी चाहें उसकी ओर यंत्र की दिशा कर दें तो वह उस व्यक्ति के मन की बात फोन के माध्यम से ईयर बड के द्वारा अति गोपनीय रूप में सुना जा सकता था. वैज्ञानिक महोदय ने इसे अपने फोन में लगा लिया. वह घर जाने को ही था तबतक उसकी धर्मपत्नी का फोन आया और उसे बाजार होते हुए उसकी सहेली के घर एक समारोह में जाने का आदेश मिला. बाजार से एक मँहगा पुष्पगुच्छ उसे लेकर जाना था. उपहार उसकी धर्मपत्नी ने स्वयं खरीद किया था. फूल वाली दुकान से उसने फूल खरीदा. यंत्र जैसे ही फूल वाले की दिशा में घूमा, उसके मन की बात साफ़ सुनाई दी. फूल वाला मन ही मन कह रहा था – देखने में यह पिद्दी साधारण लगता है, लेकिन यह इतने मंहगे पुष्पगुच्छ खरीद रहा है. मेरा अनुभव कहता है कि विवाहित यह ग्राहक अवश्य ही अपनी गोपनीय महिला मित्र के पास जा रहा है. पत्नी का जन्मदिन अथवा इनके वैवाहिक गठबंधन की बात होती तो अवश्य ही यह टुटपुँजिये पुष्पगुच्छ से काम चलाता. पुष्पगुच्छ लेकर वैज्ञानिक महोदय सीधे अपनी पत्नी के मित्र के घर पँहुचा. बाहर एक गाडी में उसकी पत्नी उसकी प्रतीक्षा में थी, जो देखते ही बाहर आयी. यंत्र से उसकी पत्नी के मन की बात सुनाई दी. पत्नी मन में कह रही थी – यह बुद्धू मुझसे डरकर मेरी उँगलियों पर नाचता है. कहने को वैज्ञानिक है लेकिन एकदम उल्लू है. अस्तव्यस्त स्थिति में पार्टी में जाने के लिए आ गया, लेकिन अच्छा है मेरी सहेली इसको घूरेगी ही नहीं. दोनों पार्टी हॉल में पँहुचे. सहेली की पच्चीसवीं वैवाहिक वर्षगांठ थी, यह उसे अभी पता चला. सहेली के पति से हाथ मिलाते हुए उसके मन की बात सुनाई दी. सहेली का पति मन में कह रहा था – ससुरे तुमको आने की क्या आवश्यकता थी? अकेले ही अपनी छप्पन छुरी को भेज देता. हाय! क्या बला है. किस घोंचू के गले में बाँध दी गयी. तभी पत्नी की सहेली के नमस्ते का उत्तर देने मुड़ा. यंत्र से आवाज आयी – हाय! कितना सीधा और आज्ञाकारी पति है. सरला इसे उँगलियों पर नचाती है. एक मेरा पति है, दुष्ट मुझे मूर्ख बनाकर सरला को घूरता रहता है. वैज्ञानिक महोदय पूरी पार्टी में यंत्र की आवाज सुनते रहे और आश्चर्यचकित रहे. कई लोगों के एक दूसरे के विरुद्ध षड्यंत्र, निंदा, नीचा दिखाने के अवसर की खोज आदि की बातें सुन परेशान हो गया. सोचने लगा कि सभ्य और धनाढ्य कहलाने वाले ये लोग कितना घटिया हैं. पार्टी से लौटकर वह सीधा अपनी प्रयोगशाला में पँहुचकर यंत्र को निकालकर नष्ट कर दिया. फिर बड़बड़ाते हुए घर आया – बस अब अपने मन की और दिल ही बात सुननी है. दूसरों के मन की बात सुनकर बोझ क्यों बढाना.

 जितना कम सामान रहेगा,

 सफर उतना आसान रहेगा.

 जितनी भारी गठरी होगी,

 उतना तू हैरान रहेगा!