बहती रही नदी………..प्रशान्त करण

बहना नदी का स्वभाव है , चलते रहना सरिता की नियति है . पथ की सारी चुनौतियों को धता बताते बढ़ती रहती है . पथ में क्या चट्टान , क्या पहाड़ , क्या विघ्न – बाधा – नदी के जल के प्रवेग से सब हार मानते हैं ! दृढ संकल्प शक्ति से , पूरे मनोयोग से , पूरी एकाग्र शक्ति से , अगाध परिश्रम से किये गए कार्य लक्ष्य को प्राप्त होकर रहते हैं , सरिता यही सिखाती है . यह कहकर रवि बाबू अपने स्मरण में कहीं खो गए .

रामलाल ने टोका – पार्टनर , आप तो गंगा जी के किनारे वाले बनारसी हैं . कुछ प्रसंग स्मरण में आ गया क्या ? रवि बाबू ने सम्भलते हुए प्रश्न को टालते हुए कहा – गुरु , हमारे घर के पास अस्सी और वरुणा नदी भी है , तभी तो अपनी वाराणसी इससे भी प्रसिद्द है . भाईसाहब , इस काशी ने क्या -क्या नहीं देखा ! महादेव की नगरी है , मस्त रहो . इतना कहकर रवि बाबू चलने लगे . तभी रामलाल ने कहा – गुरु , एक चाय तो पी लो . रवि बाबू हथेलियों से अपनी पलकों पर टंगे अश्रुओं को चतुराई से पोंछ कऱ चाय पीने रुक गए , लेकिन एक चिपकी चुप्पी के साथ . दोनों ने चुपचाप चाय पी . चाय समाप्त होते ही रामलाल ने बात प्रारम्भ की . आजकल जब से नदियों का जल स्तर गिरने लगा , प्रदूषण बढ़ने लगा , नदियाँ जलवायु परिवर्तन और मानुषिक कलुषता से सूखने लगीं हैं , मानवता की नदी भी सूखने लगी है . कोई किसी की मदद नहीं करता लेकिन मदद सभी लेने की प्रतिस्पर्धा में लगे हैं . बात तो यहाँ तक आ पँहुची कि लोग अपना घाटा सहकर भी दूसरों को डुबाने में लगे हैं . बात बढ़ते – बढ़ते रवि बाबू ऊबने लगे . तभी शशि बाबू वहाँ आ धमके .. बोले – दुष्ट ! इतना ज्ञान पिलाने के लिए आपको सीधे -साधे रवि बाबू ही मिले थे . रामलाल ने बात काटी और कहा – रवि बाबू आपको सीधे दीखते हैं . मैं इन्हें खूब पहचानता हूँ . नदी की बात से इनके आँसू छलक पड़े . कोई चक्कर अवश्य है . बात खुली नहीं कि आप टपक पड़े . शशि बाबू अपनी मुस्कुराहट छिपा नहीं पाए . बोले – भाईसाहब बात रवि बाबू की नहीं है . बात वास्तविक रूप में मेरी है . रावी नाम था उसका . उसके सौंदर्य का क्या कहना ! विधर्मीय विवाह कर पाकिस्तान चली गयी . पिछले पखवाड़े आयी थी , चार बच्चों के साथ . अपना सारा सौंदर्य बच्चों पर न्यौछावर कर दिया . मैंने दूर से देख कर अपना रास्ता बदल दिया , रवि बाबू पकड़े गए . उनको ही मुझे समझ हाथ पकड़ने लगी . बड़ी कठिनाई से रवि बाबू भागे . बहुत बदनामी इनकी हुई , आँसू उसी के थे . रावी तो झूठे प्रेम की नफ़ी में बहते – बहते पकिस्तान चली गयी , मैंने भी रास्ता बदल लिए , लेकिन रवि बाबू आज भी दुःखी हैं कि मैंने रावी को प्रस्ताव क्यों नहीं दिया ? बेचारी कैसी दयनीय हो गयी है . रवि बाबू ने वातावरण बदलते हुए कहा – रामलाल जी भाईसाहब , आजकल भ्रष्टाचार की नदी बह रही है , जाइये गोते लगाइये . नदी बहती रहती है . इसका यही स्वभाव है .शशि बाबू ने टोका – रामलाल के देह पर आज चर्बी इसी नदी में गोते लगाने से चढ़ी है . इसके पहले कि रामलाल बिफर पड़ें , शशि भाबू ने रवि बाबू का हाथ कड़ा और दोनों साथ ही वहाँ से फूट लिए .