चुनाव की तैयारी में रामलाल भटकते-भटकते थककर मुन्ना के कबाड़खाने के पास चाय के छोटे से दुकान में पहुँचे और उनकी दृष्टि चारों ओर दौड़ी। कोने में एक स्टूल पर चादर ओढ़कर बैठे एक व्यक्ति पर गई। उनको शंका हुई कि यह है कौन? उन्होंने बूढ़े चाय वाले से धीरे से पूछ लिया—”दद्दा, यह कौन है?” दद्दा भी फुसफुसाकर बोले—”रात में आया था। साथ के दो जन सुबह बोरी में सामान लेकर गए हैं। वे लौटेंगे तब यह साथ जाएगा।” रामलाल को अपना संदेह पुष्ट होता दिखा। इसलिए वे सीधे उसके पास कुर्सी खींचकर बैठ गए और बोले—”दद्दा, कुछ सामान हमलोगों को चाहिए।” उस आदमी ने मुँह पर ओढ़े चादर को हटाया तो रामलाल को काठ मार गया। “अरे, यह तो कल्लू है, हथियार आपूर्ति वाला।” कल्लू ने भी पहचान लिया। फुसफुसाकर बोला—”रामलाल बाबू, आपको कब से सामान में दिलचस्पी हो गई?” रामलाल बोले—”चुनाव है न।” फिर आपसी खुसुर-पुसुर के बाद एक देशी कट्टा दो हजार में और एक गोली चार सौ रुपए में तय हुआ। रामलाल ने पूछ लिया—”किसका कितना सप्लाई हुआ और किसका कितना ऑर्डर है?” कल्लू बोला—”सत्ता दल वाले तो पाँच सौ कट्टा और दो हजार गोली ले चुके। विपक्षी वाले भी उतना ही लिए हैं। निर्दलीय विद्रोही जी का सात सौ कट्टा और पाँच हजार गोली आदमी देने गया है। थानों में पाँच-पाँच कट्टा और पचास-पचास गोली भी दिए हैं।” रामलाल बोले—”थाने में क्यों?” कल्लू हँसने लगा और बोला—”ज़रूरत बख्त के लिए।” रामलाल समझ गए कि अब हर थाने में कम से कम पाँच-पाँच आदमी हथियार के साथ जरूर पकड़ा जाएगा। वे चाय पीकर चलने को हुए तो कल्लू ने पूछा—”कितना माल लेना है?” रामलाल बोले—”किसी को आवश्यकता होगी तो दद्दू को खबर भेज देंगे,” और फिर वे उठकर चले गए।
आगे रामगोपाल के फटफटिया शोरूम में रुके। देखा कि रामगोपाल अपने शीशे के केबिन में रुपया गिन रहे हैं और सामने भैया जी के पीए बैठे हैं। थोड़ी देर में पीए निकले तो रामलाल ने सीधे प्रश्न जड़ दिया—”भैया जी के चेलों के लिए चुनाव में कितनी फटफटिया दे रहे हैं?” पीए सकपकाए। लेकिन प्रश्न इतना सीधा था कि पीए के मुँह से अचानक निकल गया—”तीन सौ।” रामलाल मुस्काए और बोले—”हमारी बस्तियों के लौंडों पर भी दया दृष्टि भैया जी रखें।” पीए हँसकर चल दिए। रामलाल भी आज इतनी तैयारी देखकर लौट गए।