रांची: राज्य में पुराने जेल अधिनियम में संशोधन होगा। बंदियों के लिए दंड की अवधारणा के बजाए सुधारात्मक अवधारणा के अनुरूप नया कानून बनाया जाएगा। गृह, कारा एवं आपदा प्रबंधन विभाग ने इसका प्रारूप तैयार कर लिया है और विधानसभा के मॉनसून सत्र में ही इसे पारित कराने के लिए विधानसभा सचिवालय भेजा है। इस विधेयक का नाम झारखंड कारा एवं सुधार सेवाएं विधेयक 2024 रखा गया है।
सेवानिवृत्त न्यायाधीश आनंद नारायण मुल्ला की अध्यक्षता में ऑल इंडिया जेल रिफार्म कमेटी (1980-83) की अनुशंसा तथा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई जनहित याचिका जैसे सुनील बत्रा बनाम दिल्ली प्रशासन, राम मूर्ति बनाम कर्नाटक सरकार, शीला बरसे बनाम महाराष्ट्र सरकार, गुजरात सरकार बनाम गुजरात उच्च न्यायालय, आरडी उपाध्याय बनाम आंध्र प्रदेश में कारा सुधार के संबंध में कई महत्वपूर्ण परामर्श एवं दिशा-निर्देश दिए गए हैं।
जिसके परिणामस्वरूप दंड की अवधारणा में एक बड़ा बदलाव हुआ। कारा, जो पूर्व में दंडात्मक (पीनल) संस्था थी और दंड की प्रकृति थी, अब सुधारात्मक हो गई है और कारा को सुधारात्मक संस्था के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में सरकार का मानना है कि दंड की अवधारणा के इस बदलाव के आलोक में यह आवश्यक है कि द प्रिजन एक्ट 1984, द प्रिजन एक्ट 1990, द ट्रांसफर ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1950, जो सुधारात्मक एवं मानवाधिकार की अपेक्षा दंड पर आधारित है, के स्थान पर नया अधिनियम लाया जाए जिसमें संवैधानिक अवधारणा पर आधारित मानवाधिकार एवं सुधार की प्रमुखता होगी।
इस संबंध में भारत सरकार के गृह मंत्रालय की ओर से राज्य सरकार को पत्र लिखा गया है। इसके बाद गृह विभाग के अपर मुख्य सचिव रांची की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई जिसमें डीजीपी, अभियोजन महानिदेशक, जेल आईजी सहित अन्य वरीय पदाधिकारियों को रखा गया था और नए क्रिमिनल लॉ 2023 के आलोक में इसकी समीक्षा की गई है जिसके बाद नया जेल अधिनियम का प्रारूप तैयार किया गया।
100 वर्ष से अधिक समय का पुराना अधिनियम चल रहा :
झारखंड सहित सभी राज्यों में द प्रिजन एक्ट 1894, द प्रिजनर एक्ट 1900 और द ट्रांसफर ऑफ प्रिजनर्स एक्ट 1950 अधिनियम कार्यरत हैं। ये अधिनियम कारा प्रशासन एवं प्रबंधन के लिए कार्यरत हैं। सरकार का मानना है कि इनमें मुख्यतः पहले दो अधिनियम सौ वर्षों से अधिक समय पहले तैयार किए गए थे जो तत्कालीन औपनिवेशिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाए गए और लागू किए गए थे। अब इसमें संशोधन होगा और नया अधिनियम बनेगा जिसमें कैदियों के सुधार पर अधिक जोर रहेगा।