हरि बिनु हरिहैं कवन दुख मेरो……ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र

प्रस्तुत है शरणागत भजन के रूप में मेरी ये रचना :——–

हरि बिनु हरिहैं कवन दुख मेरो ।
यह संसार सागर अपार प्रभु ,
डूबि रह्यो मझधारो ।
बाँह पकड़ कर मोहे उबार प्रभु ,
आयो शरण मैं तेरो ।
हरि बिनु हरिहैं कवन………..
काम क्रोध मद लोभ मोह प्रभु ,
बाड़ लगा कर घेरो ।
केहि बिधि निकलौं राह न सूझै ,
बन्धन पड़े घनेरो ।
हरि बिनु हरिहैं कवन………..
अब प्रभु कृपा करहु सेवक पर ,
मिटै घोर अँधियारो ।
ममता मोह त्याग कर प्रभु जी ,
भजन करौं मैं तेरो ।
हरि बिनु हरिहैं कवन………..

रचनाकार

 
   ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र