झारखंड के कुछ हिस्सों को केंद्र शासित राज्य बनाना चाहिए

  • PURNENDU PUSHPESH, Chief Editor

झारखंड राज्य की स्थापना 15 नवम्बर 2000 को बिहार से अलग होकर की गई थी, और तब से लेकर आज तक इस राज्य ने अनेक चुनौतियों का सामना किया है। राज्य की स्थापना का उद्देश्य था आदिवासी और पिछड़े इलाकों के विकास को प्राथमिकता देना, लेकिन वर्षों से प्रशासनिक अड़चनों, संसाधनों की कमी और अवसंरचनात्मक असंतुलन ने इस लक्ष्य को पूर्ण रूप से हासिल करने में बाधा डाली है। विशेषकर संथाल परगना और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में विकास की दर अपेक्षित स्तर पर नहीं पहुंच पाई है। इस परिप्रेक्ष्य में, यह विचार विमर्श करने का समय है कि क्या झारखंड के कुछ हिस्सों को केंद्र शासित राज्य में परिवर्तित करना राज्य की सामाजिक और आर्थिक स्थिति को बेहतर बना सकता है।

आदिवासी क्षेत्रों की विशेष समस्याएँ

झारखंड के संथाल परगना और अन्य आदिवासी क्षेत्रों की समस्याएँ बहुत विशिष्ट हैं। यहाँ की जनसंख्या मुख्यतः आदिवासी समुदाय की है, जिनकी जीवनशैली और पारंपरिक अधिकार राज्य की मुख्यधारा के विकास के साथ पूरी तरह से मेल नहीं खाते हैं। इन क्षेत्रों में गरीबी, बेरोजगारी, शिक्षा की कमी, स्वास्थ्य सेवाओं की अभाव और अवसंरचनात्मक कमियाँ बड़ी समस्याएँ हैं। आदिवासी क्षेत्रों में विकास की प्रक्रिया अक्सर धीमी और कठिन होती है, क्योंकि इनमें प्रशासनिक और सामाजिक संरचनाएँ मूलतः अलग होती हैं।

केंद्र शासित राज्य का लाभ

केंद्र शासित राज्य की स्थिति में, ये क्षेत्र सीधे केंद्र सरकार के अधीन होंगे, जो कि इन क्षेत्रों को विशेष ध्यान देने का अवसर प्रदान करेगा। केंद्र शासित राज्यों को आमतौर पर विशेष वित्तीय सहायता, प्रशासनिक समर्थन और संसाधनों की अधिक उपलब्धता मिलती है। संथाल परगना और अन्य आदिवासी क्षेत्रों को भी ऐसी सुविधाएँ मिल सकती हैं, जो स्थानीय प्रशासनिक विफलताओं और संसाधनों की कमी को पूरा कर सकें।

  1. वित्तीय सहायता और संसाधन: केंद्र शासित राज्य बनने पर, इन क्षेत्रों को केंद्र सरकार से प्रत्यक्ष वित्तीय सहायता प्राप्त होगी। यह धनराशि विकास परियोजनाओं, आधारभूत संरचनाओं, और सामाजिक कल्याण योजनाओं पर खर्च की जा सकेगी, जिससे विकास की गति तेज होगी।
  2. प्रशासनिक सुधार: केंद्र शासित राज्यों में केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त प्रशासनिक अधिकारी होते हैं, जो स्थानीय प्रशासनिक अड़चनों को दूर करने और नीतियों के सही क्रियान्वयन को सुनिश्चित करने में मदद कर सकते हैं। इससे स्थानीय स्तर पर भ्रष्टाचार और प्रशासनिक विफलताओं में कमी आ सकती है।
  3. विशेष योजनाएँ: केंद्र शासित राज्य को विशेष योजनाओं और कार्यक्रमों का लाभ मिल सकता है, जो इन क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से तैयार किए गए हैं। उदाहरण के लिए, आदिवासी विकास, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार के लिए विशेष योजनाएँ लागू की जा सकती हैं।

संथाल परगना और अन्य आदिवासी क्षेत्रों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ बहुत महत्वपूर्ण है। इन क्षेत्रों में आदिवासियों की पारंपरिक जीवनशैली और संस्कृति का संरक्षण आवश्यक है। केंद्र शासित राज्य बनने पर, यह संभावना है कि केंद्र सरकार इन क्षेत्रों की सांस्कृतिक विरासत और पारंपरिक अधिकारों की अधिक सुरक्षा करेगी। इसके अलावा, आदिवासी समुदायों को अपनी सांस्कृतिक पहचान बनाए रखने का अधिक अवसर मिलेगा, और उनकी पारंपरिक भूमि और संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी।

हालांकि केंद्र शासित राज्य का विचार सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है, इसके साथ ही कुछ चुनौतियाँ और चिंताएँ भी हैं। स्थानीय प्रशासन, राजनीतिक दल और जनता के बीच एक स्पष्ट समझ होना आवश्यक है, ताकि बदलाव के परिणामस्वरूप कोई और समस्याएँ उत्पन्न न हों। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करना होगा कि केंद्र शासित राज्य बनने के बाद भी स्थानीय समुदायों की आवाज को सुना जाए और उनकी समस्याओं का समाधान किया जाए।

झारखंड के संथाल परगना और अन्य आदिवासी क्षेत्रों को केंद्र शासित राज्य में परिवर्तित करने का विचार एक महत्वपूर्ण और विचारणीय कदम हो सकता है। यह क्षेत्र की विशेष समस्याओं और जरूरतों के आधार पर एक विशेष ध्यान और विकास की आवश्यकता को पूरा कर सकता है। हालांकि, यह आवश्यक है कि इस प्रस्ताव पर एक विस्तृत विचार-विमर्श किया जाए और सभी संबंधित पक्षों की राय ली जाए। यदि यह कदम सही तरीके से लागू किया जाए, तो यह इन क्षेत्रों के सामाजिक और आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है और आदिवासी समुदायों के जीवन में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।