सम्पादकीय : पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश’।
झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ, जो अब तक के भारत के इतिहास में अपनी तरह का एक अद्वितीय राज्य है। यह विशेष दिन झारखंड के उन संघर्षशील लोगों को समर्पित है, जिन्होंने इस भूमि के लिए अपने अधिकारों और पहचान की लड़ाई लड़ी। झारखंड राज्य का जन्म संघर्ष, त्याग और साहस की अनगिनत कहानियों से जुड़ा है, जिनमें जनजातीय संघर्ष और आदिवासी अस्मिता की मांग प्रमुख है। यह राज्य सशक्त आदिवासी पहचान का प्रतीक है और भारत के जनजातीय अधिकारों के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में उभर कर आया है।
झारखंड के गठन का संघर्ष: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
झारखंड आंदोलन की जड़ें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय में ही पाई जाती हैं। यह संघर्ष सदियों पुराना है, जब ब्रिटिश शासन के दौरान इस क्षेत्र की प्राकृतिक संपदा का दोहन शुरू हुआ था। यहां के निवासियों ने बाहरी शोषण के खिलाफ विभिन्न आंदोलनों का सहारा लिया, जैसे कि संथाल विद्रोह (1855-57), बिरसा मुंडा का उलगुलान (1899-1900), और 20वीं सदी में अन्य कई छोटे-बड़े आंदोलन। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह किया और आदिवासी समाज में चेतना जगाने का कार्य किया, जिसके कारण उन्हें ‘धरती आबा’ के नाम से याद किया जाता है। उनके नेतृत्व में आदिवासियों ने अपनी संस्कृति, धर्म और जीवन शैली को सुरक्षित रखने के लिए लड़ाई लड़ी।
स्वतंत्रता के बाद भी झारखंड के लोगों की मुश्किलें कम नहीं हुईं। यह क्षेत्र बिहार का हिस्सा बना रहा और यहां के आदिवासियों की आवश्यकताओं और अधिकारों को नज़रअंदाज किया गया। इसके बाद झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व में इस आंदोलन को गति मिली। इस संघर्ष का केंद्र मुख्य रूप से क्षेत्रीय स्वायत्तता और संसाधनों पर अधिकार था। झामुमो के नेता शिबू सोरेन ने इस आंदोलन को आगे बढ़ाया और झारखंड के लोगों के अधिकारों की मांग की।
गठन की प्रक्रिया और चुनौतियाँ
राज्य गठन की मांग में कई उतार-चढ़ाव आए। 1980 और 1990 के दशक में आंदोलन तेज़ हुआ, और अंततः 1998 में संसद में झारखंड राज्य गठन बिल लाया गया। इसके बाद लंबी चर्चा और विचार-विमर्श के बाद 2000 में इसे मंजूरी मिली, और 15 नवंबर को, जो कि बिरसा मुंडा की जयंती भी है, आधिकारिक रूप से झारखंड का गठन हुआ। यह दिन न केवल राज्य के गठन की खुशी का प्रतीक है, बल्कि आदिवासी अस्मिता और अधिकारों की जीत का भी प्रतीक है।
स्थापना के बाद की विकास यात्रा
झारखंड की प्राकृतिक संपदा इस राज्य की सबसे बड़ी संपत्ति है। खनिज, कोयला, लोहा, बॉक्साइट, तांबा, और अन्य खनिज संसाधनों के मामले में झारखंड भारत का एक महत्वपूर्ण राज्य है। इसके बावजूद, स्थापना के बाद भी राज्य को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। भ्रष्टाचार, राजनीतिक अस्थिरता, और आंतरिक समस्याएं राज्य के विकास में बाधक रहीं। आदिवासी क्षेत्रों में बुनियादी सेवाओं की कमी, स्वास्थ्य और शिक्षा जैसे क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता बनी रही।
झारखंड की स्थापना के बाद औद्योगिकीकरण और खनन क्षेत्र में कई प्रयास किए गए। हालांकि, इन क्षेत्रों में तेजी से विकास हुआ, लेकिन इसका फायदा झारखंड के आदिवासियों और ग्रामीण समुदायों तक पूरी तरह से नहीं पहुंचा। इन क्षेत्रों में विकास कार्य के नाम पर विस्थापन और पर्यावरणीय नुकसान की समस्या भी उत्पन्न हुई।
वर्तमान में विकास की स्थिति
आज, झारखंड ने विकास के विभिन्न क्षेत्रों में कदम आगे बढ़ाए हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, बुनियादी ढांचा, ग्रामीण विकास, और उद्योग में सुधार की दिशा में प्रयास किए गए हैं। झारखंड की सरकार ने महिलाओं, बच्चों, और आदिवासी समुदाय के लोगों के उत्थान के लिए कई योजनाएं चलाई हैं। प्रधानमंत्री आवास योजना, स्वच्छ भारत अभियान, उज्ज्वला योजना जैसी केंद्रीय योजनाओं का भी राज्य में सकारात्मक प्रभाव देखने को मिला है। ग्रामीण क्षेत्रों में जल जीवन मिशन के तहत जल आपूर्ति में सुधार लाने के प्रयास किए गए हैं।
झारखंड में सूचना प्रौद्योगिकी और कृषि क्षेत्र में भी निवेश की संभावनाएं तलाशी जा रही हैं। राज्य की सरकार ने पर्यटन को भी बढ़ावा देने के लिए कई कदम उठाए हैं, जिनमें राज्य के प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का प्रयास किया जा रहा है।
झारखंड का भविष्य: संभावनाएं और चुनौतियां
झारखंड की विकास यात्रा में कई संभावनाएं हैं, जो राज्य के भविष्य को उज्जवल बना सकती हैं। झारखंड की खनिज संपदा और प्राकृतिक संसाधनों का यदि सही उपयोग हो, तो यह राज्य देश की आर्थिक समृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान कर सकता है। राज्य में ‘मेक इन झारखंड’ और ‘झारखंड स्टार्टअप पॉलिसी’ जैसी योजनाएं हैं, जिनका उद्देश्य यहां के युवाओं को रोजगार के अवसर प्रदान करना है।
राज्य में कृषि के क्षेत्र में भी विकास की अपार संभावनाएं हैं। झारखंड का जलवायु कृषि के लिए अनुकूल है, और अगर आधुनिक कृषि तकनीक और सिंचाई सुविधाओं का सही ढंग से उपयोग किया जाए, तो झारखंड अपनी कृषि उपज में वृद्धि कर सकता है। जैविक खेती के लिए भी झारखंड की जलवायु अनुकूल है, और इसका विस्तार किया जा सकता है।
पर्यटन क्षेत्र में झारखंड को अपनी प्राकृतिक सुंदरता का फायदा उठाने की जरूरत है। यहां के जलप्रपात, वन्यजीवन, और सांस्कृतिक धरोहरें राज्य को पर्यटन का केंद्र बना सकती हैं। इस क्षेत्र में निवेश कर, और इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाकर, राज्य पर्यटन से बड़ी आमदनी अर्जित कर सकता है।
हालांकि, झारखंड को अपनी आंतरिक समस्याओं का समाधान भी ढूंढना होगा। राज्य के कई इलाकों में नक्सलवाद जैसी समस्याएं अब भी विकास में बाधक बनी हुई हैं। जिन्हें हर संभव प्रयास कर के मुख्यधारा में लाना होगा। इसके अतिरिक्त, शोषण, असमानता और आदिवासी समाज की उपेक्षा को दूर करना भी आवश्यक है। इन्हें तमाम मौलिक सुविधाएँ तो देने ही होंगी , साथ ही इन्हें यह विश्वास भी दिलाना होगा की ये सब भी राष्ट्रीय मुख्यधारा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
झारखंड स्थापना दिवस हमें झारखंड के संघर्ष और उसकी अस्मिता की याद दिलाता है। यह दिन राज्य के विकास के नए आयामों की ओर देखने और इसे एक आत्मनिर्भर राज्य बनाने का संकल्प लेने का दिन है। झारखंड ने संघर्षों से उठकर आज जिस तरह से विकास की दिशा में कदम बढ़ाए हैं, वह सराहनीय है। राज्य में प्राकृतिक संसाधनों के उचित उपयोग और जनजातीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा के बीच संतुलन बनाकर झारखंड को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया जा सकता है। यहाँ के विकासक्रम में शामिल सभी प्रकार के दलों में आदिवासी और आदिवासी सस्कारों का बराबरी के स्तर पर समायोजन हो ताकि तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बनते राष्ट्र में झारखण्ड के आदिवासियों का भी समुचित योगदान हो सके।
झारखंड का भविष्य आशाजनक है, लेकिन इसके लिए सतत विकास, नीतिगत सुधार, और सामाजिक न्याय की दिशा में निरंतर प्रयास आवश्यक हैं। बहरी – भीतरी , श्रेष्ठ आदिवासी जाति की लड़ाई , या ऐसी सभी जातिगत और क्षेत्रगत लड़ाइयों से ऊपर आना होगा। झारखंड स्थापना दिवस के अवसर पर यही उम्मीद की जाती है कि यह राज्य अपने मूल्यों और सांस्कृतिक धरोहर के साथ आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में नए मानदंड स्थापित करेगा, और आने वाले वर्षों में एक आत्मनिर्भर और विकसित राज्य के रूप में अपनी पहचान बनाएगा।