कागभुषुण्डी जी गरूड़ जी से ज्ञान और भक्ति का निरूपण करते हुए कहते हैं कि हे गरूड़ जी बिना भजन के श्रीराम जी रीझते नहीं हैं और जब तक श्रीराम जी प्रसन्न नहीं होंगें तब तक उनकी प्रभुता जानी नहीं जा सकती और जब तक जानेगें नहीं तब तक प्रभु पर विश्वास नहीं होगा और बिना विश्वास के प्रेम नहीं होगा और प्रेम के बिना भक्ती दृढ़ नहीं होगी, जैसे किसी बर्तन में जल भर कर उसमें तेल डाल दिया जाय और बर्तन को टेढ़ा किया जाय तो सबसे पहले जल की यह चिकनाई हीं छलक कर गिरती है उसी प्रकार बिना प्रेम की भक्ति भी आकर चली जाती है। वह दृढ़ नहीं हो पाती। जिस प्रकार बिना गुरु का ज्ञान नहीं होता उसी प्रकार बिना भक्ति का सुख नहीं मिलता इसलिए हे गरूड़ जी श्रीराम जी का भजन करना चाहिए। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है प्रभु कृपा से रचित ये रचना:——
भजहु राम चरनन मोरे भाई । बिनु हरि भजन न राम रिझाई, प्रभुता राम जानि नहिं जाई । भजहु राम चरनन………. जाने बिना परतीति न होई, बिनु परतीती प्रिति न होई । भजहु राम चरनन………. प्रिति बिना नहिं भगति दृढ़ाई, जिमि नहिं ठहरहिं जल चिकनाई । भजहु राम चरनन………. बिनु गुरु ज्ञान न होय रे भाई, भगति बिना सुख मिलहीं न पाई । भजहु राम चरनन……… काम क्रोध मद लोभ रे भाई, सब तजि भजन करहु रघुराई । भजहु राम चरनन………