आज बाजारीकरण के युग में सच्चा शिक्षक होना आसान नहीं

(राष्ट्रीय शिक्षक दिवस विशेष – 05 सितम्बर 2023)

 शिक्षक को समाज में माता-पिता समान ईश्वर का रूप माना जाता हैं। शिक्षक त्याग, समर्पण और न्याय की वह मशाल हैं, जो स्वयं जलकर विद्यार्थियों को यश मार्ग प्रशस्त करने के लिए प्रकाशमान होती है। एक सच्चे शिक्षक में मुख्यतः गुण विषयतज्ञ, कौशलपूर्ण, मार्गदर्शक, दूरदर्शी, शोधकर्ता, विश्लेषक, मृदुभाषी, सहकारी, अनुशासित, समयनिष्ठ, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ, समर्पित, परोपकारी और मेहनती होते है। शिक्षक सर्वदा घृणित व्यवहार, लालच, अभिमान, दिखावा, नशा और भ्रष्टाचार से दूर रहकर, कठिन परिस्थितियों में भी हार न मानकर हमेशा समाज में नयी पीढ़ी को आदर्श रूप देने के लिए ऊर्जावान बने रहते है। सच्चा शिक्षक जात-पात, धर्म, रंग, ऊंच-नीच, लिंगभेद जैसे विचारों से अलिप्त रहकर अपने विद्यार्थियों को एक समान दृस्टी से देखता हैं जैसे माँ अपने सभी बच्चों को एक समान देखती है। देश में, समाज में, दुनिया में शिक्षक बेहद जिम्मेदारी का पद हैं, शिक्षक पर नई पीढ़ी को कर्तव्यदक्ष सुजान नागरिक में परिवर्तित करने की कला होती हैं। शिक्षक के कला-गुणों पर ही देश का उज्जवल भविष्य तैयार होता हैं, और यही हैं एक सच्चे शिक्षक की पहचान।

आज समाज में आपराधिक वृत्ति काफी तेजी से बढ़ी हैं, स्कूली बच्चें से लेकर महाविद्यालयीन किशोर गंभीर अपराधों में लिप्त नजर आते हैं, सभ्यताओं, मूल्यों, मान, संस्कारों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई जाती है, आज हम खूब सुशिक्षित हो रहे हैं लेकिन सुसंस्कृत क्यों नहीं? हर ओर शिक्षा का व्यापारीकरण नजर आता है। आज के आधुनिक समय में शहरों और महानगरों में स्कूल का नाम ब्रांड बन गया हैं, सभी अभिभावक नामी निजी स्कूलों में ही अपने बच्चो को पढ़ाना चाहते हैं, तो फिर यह प्रश्न चिन्ह तैयार होता हैं कि सर्वोत्तम स्कूली शिक्षा के बावजूद बच्चों को बाहर कोचिंग सेंटर क्यों भेजा जाता हैं? बेहतर निजी शिक्षा संस्थान में बच्चों को पढवाने के बावजूद बच्चों को प्रथम कक्षा से ही ट्यूशन लगवाना जरुरी समझा जाता है। विद्यार्थियों के ड्रेस, किताबें, कॉपियां, स्टेशनरी, बैग अर्थात सब शिक्षा संबंधी साहित्य खरीदारी के नियम भी पहले से तय होते हैं और वर्षभर अलग-अलग एक्टिविटीज-इवेंट अलग से चलते रहते हैं।

आबादी के मामले में विश्व में अग्र क्रम पर तथा सबसे अधिक शिक्षासंस्थानों में तीसरे क्रमांक पर हमारा भारत देश है, फिर भी हर साल बड़ी संख्या में हमारे देश के लाखों विद्यार्थी पढ़ाई करने विदेश जाते है, साथ ही बड़ी मात्रा में देश का धन भी बाहर जाता है। गुणवत्ता की बात करे तो विश्वस्तर पर शीर्ष के शिक्षा संस्थानों में भारत का नाम नदारद है। यूनेस्को की शिक्षा रिपोर्ट 2021 अनुसार, देश में 1 लाख स्कूल सिर्फ 1 शिक्षक के भरोसे चलते हैं। देश के स्कूलों में 11.16 लाख पद रिक्त हैं, जिनमें से 69% ग्रामीण क्षेत्रों में हैं, जबकि देश में उच्च शिक्षित बेरोजगारों की संख्या तेजी से बढ़ी हैं। शिक्षा विभाग क्षेत्र में अक्सर घोटालों की गूंज सुनाई देती हैं। कहाँ, किस पद का, किस काम का, कितना रेट तय है? यह उस क्षेत्र से संबंधी लोगों को पता होता हैं, लेकिन सब अपने फायदे के हिसाब से या डर से आँखे मूंदकर रहते हैं। अन्याय और भ्रष्टाचार करके अगर शिक्षक नौकरी पाता है, अनुचित कार्य करता है, तो वह कैसे अपने पद से न्याय कर पायेगा? और कैसे वह आदर्श पीढ़ी का शिल्पकार कहलायेगा?

जिन निजी शिक्षा संस्थानों का नाम मशहूर हैं वहां शिक्षक कर्मचारियों का वेतन तो भी ठीक-ठाक हैं क्योंकि उन्हें अपना स्तर बनाए रखना हैं, परंतु अधिकतर संस्थानों में तो शिक्षक दिहाड़ी मजदुर से भी कम वेतन पर काम करता हैं। इस महंगाई के दौर में कई शिक्षकों का अत्यल्प वेतन पर कार्य करना, उनका जीना मुश्किल बनाता हैं, तो कही शिक्षकों को महीनों तक बिना वेतन कार्य करवाया जाता है, तो कई राज्यों में बरसों से नहीं अपितु दशकों से शिक्षकों की नई भर्तियां ही नहीं हुई है। अनेक शिक्षा-संस्थानों में योग्यतापूर्ण शिक्षक तक नहीं, फिर भी पढ़ाते हैं। देश के अनेक विश्वविद्यालय और सरकारी अनुदानित शिक्षा संस्थान ठेका पद्धति द्वारा अनेक वर्षो से शिक्षकों को टेम्पररी काम पर रख कर शिक्षा का कार्य चला रहे है। देश में केजी से लेकर पीएचडी तक शिक्षा के लिए आवश्यक तज्ञ शिक्षकों में बेतहाशा बेरोजगारी का आलम होने से  शिक्षा क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए संघर्ष चरम पर नजर आता है, जिसके कारण भेदभाव, भ्रष्टाचार, सिफारिश जैसी समस्या उदयमान होती है। इन सब के चलते जो जैसी नौकरी मिले किसी भी क्षेत्र में शिक्षक काम करने को तैयार हो जाते है। बड़ी संख्या में शिक्षक उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद शिक्षण विभाग में करियर न बनने के कारण मजबूरी में प्रोफेशन बदल लेते है। कई लोगों के जीवन का सबसे कीमती समय इसी तरह बर्बाद हो जाता हैं, जिसका उनके पूरे जीवन पर बुरा असर पड़ता है।

शिक्षक जैसे पवित्र पद को कलंकित करने वाली अनेक खबरें आजकल देखने-सुनने को मिलती है, जो इंसानियत को भी शर्मसार कर देती है। ऐसे ये शिक्षक नहीं, समाज के भक्षक है, जो शिक्षक के मूल परिभाषा से अनभिज्ञ होकर ये शिक्षक के पद की गरिमा को धूमिल करते है। आज बढ़ती सामाजिक समस्याओं में भ्रष्टाचार, लालफीताशाही, अत्याचार, अपराध, स्वार्थवृत्ति, नशाखोरी, मिलावटखोरी, प्रदूषण, कामचोरी, झूठ, जालसाजी, संस्कारहीन व्यवहार इन सभी समस्याओं का मूल कारण लोगों द्वारा नियमों की अवहेलना और लापरवाही है, जो काफी हद तक उस व्यक्ति की शिक्षा और संस्कार पर सवाल उठाता है। कोई भी बचपन से ही अपराधी के रूप में जन्म नहीं लेता है, बच्चें कच्चे मिट्टी के घड़े से होते है, शिक्षक उन्हें जैसा बनाएंगे विद्यार्थी वैसा बन जायेंगे, माना कि बच्चों पर समाज और परिवार का प्रभाव भी होता है लेकिन मुख्य मार्गदर्शक की भूमिका में शिक्षक ही होता है। आज के इस व्यापारीकरण के युग में शिक्षक को आत्मचिंतन की बेहद आवश्यकता हैं, क्योंकि शिक्षक के कला-गुणों पर ही देश का आनेवाला कल निर्भर है। ऐसा भी नहीं है कि अब शिक्षक समाज सुधारक के रूप में नजर नहीं आते, कम ही सही लेकिन कई शिक्षक सच्चे समाजसुधारक बनकर आज भी विपरीत परिस्थितियों से मुकाबला कर समर्पण की भावना से विद्यार्थियों में शिक्षा की ज्योत प्रज्वलित करने के लिए संघर्ष कर रहे है।

ऐसे अनगिनत महान व्यक्तित्व हुए हैं जिन्होंने देश की जनता की समस्याओं को अपनी समस्या समझकर देश व समाज की सेवा में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, जिसमें शिक्षा का क्षेत्र भी प्रमुख हैं। देश में महिला शिक्षा की पहली लौ जलानेवाले महान समाज सुधारक सावित्रीबाई ज्योतिबा फुले थीं, जिन्होंने महिला शिक्षा को सफल बनाने के लिए कई कठिनाइयों से संघर्ष किया, सावित्रीबाई फुले को भयंकर सामाजिक विरोध का सामना करना पड़ा। लोग उन पर कीचड़, पत्थर, गोबर फेंकते थे, मारते थे, गालियां देते थे, श्राप देते थे, तिरस्कार और घृणा की दृष्टि से देखते थे। इतने असहनीय अत्याचारों के बावजूद उन्होंने ज्योतिबा फुले की मदद से लड़कियों के लिए देश का पहला स्कूल खोला, नारी शक्ति सदैव उनकी ऋणी रहेगी। आज के समय में सच्चा शिक्षक बनना आसान नहीं है, उसके लिए शिक्षा-संस्कार की अग्नि में तपना पड़ता हैं, देश, समाज के विकास के लिए समाजसुधारक की भूमिका निभानी होती हैं, सच्चा शिक्षक कभी भी पहले खुद के बारे में नहीं अपितु विद्यार्थियों के विकास के बारे में सोचता है। आज समाज में कितने शिक्षक हैं जो महात्मा ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, साने गुरूजी जैसा संघर्ष करके समाज में फैली बुराइयों के विरुद्ध लड़ाई लड़ने के लिए तत्पर हैं और आदर्श पीढ़ी के के शिक्षक कहलाने के काबिल है। आज हमारे समाज में ऐसे कितने मेहनती शिक्षक हैं जो अपने निस्वार्थ कर्तव्य और छात्रों के उज्ज्वल भविष्य के लिए समाज की बुराइयों से लड़ सकते हैं, और जो लड़ सकते हैं, वहीं सच्चे शिक्षक है।

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

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