सावन का महीना, पति परदेश, एक विरहन प्रियतम के विरह में व्याकुल भगवान कृष्ण से अपनी विरह वेदना सुनाते हुए विनती कर रही है कि…
View More पिया बिनु बीते नहीं दिन रैन………..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रAuthor: admin
रिमझिम बरसे बदरिया….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
एक पत्नी का पति परदेश से घर आया है। बरसात का मौसम है। बादल गरज रहे हैं, बिजली चमक रही है, रिमझिम वर्षा बरस रही…
View More रिमझिम बरसे बदरिया….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रकश्मीर की आर्थिक उन्नति से विचलित आतंक: पहलगाम पर सुनियोजित हमला
सम्पादकीय: पूर्णेन्दु सिन्हा ‘पुष्पेश ‘ कश्मीर की घाटी एक बार फिर स्थानीय राजनीति और आतंकवादी साजिशों के केंद्र में आ चुकी है। एक ओर केंद्र…
View More कश्मीर की आर्थिक उन्नति से विचलित आतंक: पहलगाम पर सुनियोजित हमलासावन की आई बहार हो…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
शिव जी का परम पवित्र सावन मास की मनोहारी सुहावनी छटा का वर्णन मेरी इस रचना के माध्यम से:——– सावन की आई बहार हो, बरसे…
View More सावन की आई बहार हो…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रचित्रगुप्त से कही गयी गौरैया पीड़ा कथा -डॉ प्रशान्त करण
चित्रगुप्त जी को अपनी नींद और अपना ऐशोआराम बड़ा प्रिय था। इससे उनके अहंकार का पौधा वटवृक्ष बन खूब फैलने लगा था। परिवारवाद ने यह…
View More चित्रगुप्त से कही गयी गौरैया पीड़ा कथा -डॉ प्रशान्त करणतुम न आए सनम मैं बुलाती रही…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
प्रस्तुत है मेरी ये रचना गजल के रूप में :—— तुम न आए सनम मैं बुलाती रही । क्या खता थी हमारी बताते सनम ,…
View More तुम न आए सनम मैं बुलाती रही…-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्रजारे जारे कजरारे कजरारे बदरा ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
एक युवती का पति परदेस में है और वह विरह में व्याकुल होकर बादल से विनती कर रही है कि हे बादल तुम मेरा संदेश…
View More जारे जारे कजरारे कजरारे बदरा ….-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्ररोटी कारन पिया परदेशी भए…ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
रोटी कमाने पति परदेश चला गया है और पत्नी विरह में व्याकुल उसके आने की प्रतीक्षा कर रही है। इसी प्रसंग पर प्रस्तुत है मेरी…
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पटना, 20 अप्रैल 2025 – वेब जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (WJAI) द्वारा आयोजित संवाद कार्यक्रम में शनिवार की शाम डिजिटल मीडिया की भूमिका, पत्रकारों की…
View More WJAI संवाद: डिजिटल मीडिया की ताकत बड़ी, जिम्मेदारी उससे भी बड़ी – संविधान में आजादी के साथ बंदिशें भी जरूरीकहाँ जा रहा है ? …..-ब्रह्मेश्वर नाथ मिश्र
कहाँ जा रहा है ?—– विरह में बिलखत कौशिल माई । कोइ मोरे लाल दिखाई । कहाँ जा रहा है भटकता तु नर ? न…
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